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तिहुयणगिरि तलहट्टी हु रासउ माथुरसंघ मुणिवरु - विणायचंदि कहिउ ||
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उदयचंदु गुणगणहरु गरुबउ | सो मई भावें मणि अणुसरियउ || बालइंदु मुणि विवि निरंतरु | णरगउतारी कहमि कहंतरु ॥
विनयचन्द्रमुनिकी एक अन्य रचना 'चूनड़ी' उपलब्ध है, जिसमें उन्होंने माथुरसंघके मुनि उदयचन्द्र तथा बालचन्द्रको नमस्कार किया है । और त्रिभुवनगिरिनगरके अजयनरेन्द्रकृत 'राजविहार को अपनी रचनाका स्थान बताया है
माथुरसंघ उदयमुणीसरु ।
गगन बाद गुरु गणहरु ! जंपर विणयमयंकु मुणि 1
तिहुयण गिरिपुर जगि विक्खायउ | सग्गखंड णं धरयलि आयउ ||
तह शिवसंते मुणिवरें अजयणरिदो राजाविहारहि । ar विरइय नूनडिय सोहहु मुणिवर जे सुयधारहिं ||
इन उद्धरणोंसे यह अवगत होता है कि उदयचन्द्र माथुरसंघके थे । सुगन्धदशमीकथाकी रचनाके समय वे गृहस्थ थे। उन्होंने अपनी पत्नीका नाम देवमति बताया है । यही कारण है कि विनयचन्द्रने 'निज्झरपंचमीकहा ' और बालचन्द्र ने 'नरगउतारी कथा' में उन्हें गुरु — विद्यागुरुके रूपमें स्मरण किया है, नमस्कार नहीं किया । उदयचन्द्रने दीक्षा लेकर जब मुनिचर्या ग्रहण कर ली, तो विनयचन्द्रने उन्हें 'चूनड़ी' में मुनोश्वर कहा है और अपने दीक्षागुरु बालचंद्रके साथ उन्हें भी नमस्कार किया है । यहाँ यह ध्यातव्य है कि विनयचन्द्रने विद्यागुरु होने से उदयचन्द्रका सर्वत्र पहले उल्लेख किया है और दीक्षागुरु बालचन्द्रका पश्चात् । बालचन्द्रने भी उदयचन्द्रको गुरुरूपमें स्मरण किया है।
उदयचन्द्र, बालचन्द्र और विनयचन्द्र माथुर संघ मुनि थे। इस संघका साहित्यिक उल्लेख सर्वप्रथम अमितगतिके ग्रन्थोंमें मिलता है । सुभाषितरत्न
१. हीरालाल जैन, सुगन्धदशमी कथा, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, प्रस्तावना, १० २-३ ।
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : १८५