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मौनीदेव
माधवचन्द्र
अभयनन्दी
T वासवचन्द्र
देवचन्द्र
वासचन्द्र के सम्बन्ध में अन्वेषण करनेपर दो वासवचन्द्रोंका पता चलता है । एक वे वासवचन्द्र हैं जिनका उल्लेख खजुराहोके वि०सं० १०११ वैसाख शुक्ला सप्तमी सोमवारके दिन उत्कीर्ण किये गये जिननाथ मन्दिरके अभिलेखमें हुआ है, जो वहाँके राजा धंगके राज्यकालमें उत्कीर्ण कराया गया था । द्वितीय वासवचन्द्रका उल्लेख श्रवणबेलगोलके अभिलेख में पाया जाता है । इस अभि लेखमें बताया है—
'वासवचन्द्र - मुनीन्द्रो रुन्द्र- स्याद्वाद - तक्कं कर्कश - विषणः । चालुक्य-कटक-मध्ये बाल-सरस्वतिरिति प्रसिद्धि प्राप्तः ॥ "
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'श्रीमूलसङ्घद देशीयगणद वक्रगच्छद कोण्डकुन्दान्वयद परियलिय वड्डदेवर . बलिय" "वासयचन्द्रपण्डित - देवरु ।' इस उद्धरणसे स्पष्ट है कि वासवचन्द्र मुनीन्द्र स्याद्वाद - विद्याके विद्वान् थे । कर्कश सर्क करनेमें उनकी बुद्धि पटु थी । उन्होंने चालुक्य राजाकी राजधानी में 'बालसरस्वती' की उपाधि प्राप्त की थी ।
श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने अनुमान किया है कि श्रवणबेलगोलके अभिलेखमें उल्लिखित वासवचन्द्र ही देवचन्द्र के गुरु संभव हैं। पर यहाँ पर यह कठिनाई उपस्थित होती है कि मूलसंघ देशोगण और वक्रगच्छ में 'कुन्दकुन्दके अन्वयमें देवेन्द्र सिद्धान्तदेव हुए। इनके शिष्य चतुर्मुखदेव या वृषभर्नान्द थे । इन वृषभनन्दिके ८४ शिष्य थे। इनमें गोपनन्दि, प्रभाचन्द्र, दामनन्दि, गुणचन्द्र, माघनन्दि, जिनचन्द्र, देवेन्द्र, वासवचन्द्र, यशः कीर्ति एवं शुभकीर्ति प्रधान हैं । देवचन्द्र प्रशस्तिमें अभयनन्दिको वासवचन्द्रका गुरु बताया है । अतः इस गुरुपरम्पराका समन्वय श्रवणबेलगोलके शिलालेख में उल्लिखित
९. Epigraphica India, Vol. VIll, Page 136.
२. सं० डॉ० प्रो० हीरालाल जैन, जैन शिलालेख संग्रह प्रथम भाग, माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रंथमाला, अभिलेखसंख्या ५५, पद्य २५ ।
आचार्यश्य काव्यकार एवं लेखक : १८१