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________________ में निश्चित रूपसे कुछ नहीं कहा जा सकता है। आमेर-शास्त्रभण्डारमें इनके द्वारा रचित ग्रन्थकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ प्राप्त हैं। एक वि०सं० १५८३ की और दूसरी १६०३की लिखी हुई है। श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने अपने 'प्रशस्तिसंग्रह'ग्रंथमें वि० सं० १५३० में लिखित प्रतिका उपयोग किया है । अतः इतना सुनिश्चित है कि वि० सं० १५३० के पूर्व महाकवि यशकीति हुए हैं। पूर्ववर्ती कदियोंमें महाकवि यशःकीत्तिने जिन कवियोंका निर्देश किया है उनमें जिनसेन ही विक्रमकी नवम शताब्दीके कवि हैं। अत: नवम शताब्दीके पश्चात् और १५ वीं शताब्दीके पूर्व महाकवि यशःकीत्ति हुए हैं। पर यह ६०० वर्षांका अन्तराल खटकता है। कविकी रचनाका प्रेरक गुजरातका सिद्धपाल है। विक्रमको ११ वीं शताब्दीसे गुजरातकी समद्धि विशेषरूपसे बढ़ी है । सिद्धराज, जयसिंह और कुमारपालने गुजरातके यशकी विशेषरूपसे वृद्धि की है। अतएव कविकी रचनाका प्रेरक सिद्धपाल विक्रमसंवत् ११०० के उपरान्त होना चाहिए। अतएव कविने इस ग्रंथकी रचना ११ वीं शतीके अन्समें या १२ वीं शतीके प्रारंभमें की होगी। रचना चन्द्रप्रभचरित ११ सन्धियोंमें लिखा गया है। इसमें कविने आठवें तीर्थकर चन्द्रप्रभकी कथा गुम्फित की है । अथका आरंभ मंगलाचरण, सज्जन दुर्जनस्मरणसे होता है । अनन्तर कवि मंगलवती पुरीके राजा कनकप्रभका चित्रण करता है। संसारको असार और अनित्य जान राजा अपने पुत्र पद्मनाभको राज्य देकर विरक्त हो जाता है। दूसरीसे पांचवीं सन्धि तक पद्मनाभका चरित आया है और श्रीधर मुनिसे रामाका अपने पूर्व जन्मके वृत्तान्त सुननेका उल्लेख है। छठी सन्धिमें राजा पपनाम और राजा पृथ्वीपालके बीच युद्ध होनेकी घटना वर्णित है। राजा विजित होता है किन्तु पपनाम युद्धसे विरक्त हो जाता है और राज्यभार अपने पुत्रको देकर वह श्रीधर मुनिसे दीक्षा ग्रहणकर लेता है। आगेवाली सन्धियोंमें पचनाभके चन्द्रपुरीके राजा महासेनके यहाँ चन्द्रप्रभ रूपमें जन्म लेने, संसारसे विरक्त हो केवलज्ञान प्राप्तकर अन्तमें निर्वाण प्राप्त करनेका वर्णन आया है। इस पंथकी थैली सरल और इतिवृत्तात्मक है। शैलीको आडम्बरहीनता भी इस गंथकी प्राचीनताका प्रमाण है। राजा, नगर, देश आदिका वर्णन सामान्यरूपमें ही आया है । कवि कहता है तहिं कणयप्पड नामेण राउ जेपिछिवि सुखइ हुउ विराउ । जसु भमई कित्ति भवणंतरम्मि, थेखि अइसकडि निय धरम्मि । आचार्यतुल्य काम्पकार एवं लेखक : १७९
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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