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________________ याकीचि प्रथम 'चंदप्पहचरिउके रचयिता कवि यश:कीति है। यशःकोतिनामके कई आचार्य हुए हैं। उनमेंसे कईने अपभ्रंश-काव्योंकी रचना की है। 'चन्दप्पहचरिउके रचयिता यशःकीतिने न तो ग्रंथका रचनाकाल ही अंकित किया है और न कोई विस्तृत प्रशस्ति ही लिखी है। पुष्पिकावाक्यमें कविने अपनेको महाकवि बताया है। लिखा है "इय-सिरि-चंदप्पह-चरिए महाकइ-जसकित्ति-विरइए महाभब्व-सिद्धपालसवण-भूसणं सिारचंदप्पह-सभिणियाणामणो णाम एयारहमी संधी-परिच्छेओ सम्मत्तो।" कविने आचार्य समन्तभद्रके मुनिजीवनके समय घटित होनेवाली और अष्टम तीर्थकर चन्द्रप्रभके स्तोत्रके सामथ्र्यसे प्रकट होनेवाली चन्द्रप्रभकी मूर्तिसम्बन्धी घटनाका उल्लेख करके अकलंक, पूज्यपाद, जिनसेन और सिद्धसेन नामके पूर्ववर्ती विद्वानोंका उल्लेख किया है। आश्चर्य है कि कविने अपन शके किसी कविका नाम निर्देश नहीं किया है। कविने इस ग्रंथको हुम्बडकुलभूषण कुंवरसिंहके सुपुत्र सिद्धपालके अनुरोधसे रचा है। वे गुर्जरदेशके अन्तर्गत उन्मत्तदेशके वासी थे। आदि और अन्तमें कविने इस ग्रंथके प्रेरकका उल्लेख किया है तुंबड-कुल-नहलि पुष्फयंत, बहु देउ कुमरसिंहवि महंत । तहो सुउ णिम्मलु गुण-गण-विसालु, सुपसिद्धउ पभणइ सिद्धपालु । जसकित्तिविबुह-करि तुह पसाउ, मह पूरहि पाइय कन्व-भाउ । तं निसुणिवि सो भासेइ मंदु, पंगलु तोडेसइ केम चंदु। इह हुइ बहु गणहरणाणवंत, जिणवयण-रसायण-वित्थरंत । गुज्जर-देसह उम्मत्त गामु, तहि छड्डा-सुउ हुउ दोण णामु । सिद्धउ तहो णंदणु भब्ध-बंधु, जिण-धम्म-भारि में दिण्णु खंघु । तहु सुउ जिट्ठउ बहुदेव भब्बु, जे धम्मकज्जि विव कलिज दव्यु । तहु लहु जायउ सिरि कुमरसिंह, कलिकाल-करिदहो हणण सीहु । तहो सुउ संजायउ सिपालु, जिण-पुज्ज-दाण-गुणगण-रमालु। तहो डवरेहि इह कियउ गंधु, हउं णमु णमि किपिवि सत्थु गंधु । स्थितिकाल अंचके रचनाकालका उस्लेख न होनेसे महाकवि यःकोत्तिके समयके सम्बन्ध१५८ : तीपंकर महापार और अमाती बाबा परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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