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________________ भय-भरियागय-जण- रक्खवाल छण ससि परिसर- दल विउल-भाल | संसार - सरणि- परिभ्रमण-भीय गुरु चरण - कुसेसय - चंचरीय | पोरि-घसिय विबुद्ध-वग्ग णाणि - विम-वि-णीइ-मग्ग । जस-पसर- भरिय बंभंड-खंड मिच्छत्त- महीहर- कुलिस-दंड । तज्जिय- माया - मय-माण- डंभ महमइ करेणु आलाण-थंभ | समयाणुवेइ गुरुयण - विणीय दुत्थिय-पर-गिव्वाणावणीय | शास्त्रोपदेशके वचनामृतके पानसे तृप्त भव्यजन मिय्यात्वरूपी जीणं वृक्षको समाप्त कर डालते हैं । सम्यक्त्वरूपी सूर्यके उदय होते ही मिथ्यात्वरूपी अंधकार क्षीण हो जाता है। अपराधरूपी मेघोंको छिन्न-भिन्न करनेके लिए प्रचण्ड वायु, विकसित कमलके समान मुखकीर्तिके धारक, भयसे लदे हुए बाने वाले जनोंके रक्षपाल, पूर्ण चन्द्रमण्डलके अर्द्धभाग समान भालयुक्त, संसारसरणिमें परिभ्रमणसे भीत, गुरुके चरणकमलोंके चंचरीक, धर्मके आश्रित हुए समझदार लोगोंका पोषण करने वाले, निरुपम राजनीतिमार्ग के ज्ञाता, यशके प्रसारसे ब्रह्माण्डखण्डको भर देने वाले, मिथ्यात्वरूपी पर्वतके वञ्चदण्ड, माया, मद, मान और दंभके त्यागी, महामतिरूपी हस्तिको बाँधने स्तंभ, समयवेदी, गुरुजन, विनीत्त और दुःखित नरोके कल्पवृक्ष, तुम कविजनोंके मनोरंजन, पापविभंजन, गुणगणरूपी मणियोंके रत्नाकर और समस्त कलाओंके निर्मल सागर हो । इस प्रकार कथाके माध्यम से अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षाव्रत, सप्तव्यसनत्याग, चार कषायका त्याग, इन्द्रियोंका निग्रह, अष्टांग सम्यक्दर्शन, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चार पुरुषार्थ, स्वाध्याय, आत्मसन्तोष, जिनपूजा, गुरुभक्ति आदि धार्मिक तत्त्वोंका परिचय प्रस्तुत किया है। लेखककी शैली उपदेशप्रद न होकर आख्यानात्मक है । और कविने अन्यापदेश द्वारा धार्मिक तत्त्वोंकी अभिव्यञ्जना की है। यह ग्रंथ लघुकाय होनेपर भी कथाके माध्यमसे धार्मिक तत्त्वोंकी जानकारी प्रस्तुत करता है । भाचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : १७७ १२
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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