SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिता थे । कोषपालके पुत्र यशपाल और यशपालके लाहढ़ हुए। इनकी जिनमती भार्या थी । इससे अल्हण, गाहुल, साहुल, सोहण, रग्रण, मयण और सतण हुए । इनमेंसे साहुल लाखू के पिता थे । इस प्रकार लक्खणका सम्बन्ध यदुवंशी I राजघराने के साथ रहा है । रचनाएँ afविकी तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं - ( १ ) चंदणछट्ठी कहा, (२) जिणयत्तकहा और (३) अणुवय- रयण- पईव । 'चंदनष्ठकथा-कविको प्रारम्भिक रचना है और इसका रचना-काल वि० सं० १२७० रहा होगा। यह रचना साधारण है और कविने इसके अन्तमें अपना नामांकन किया है "इय चंदणछट्ठिहि जो पालइ बहु लक्खणु ! सो दिवि भुजिवि सोक्खु मोक्खहु णाणे लक्खणु । " ''जिनदत्तकथा' - - इसकी प्रति आमेर शास्त्र-भंडार में प्राप्त है । कविने जिनदत्तके चरितका गुम्फन ११ सन्धियोंमें किया है। मगधराज्यके अन्तर्गत वसन्तपुर नगरके राजा शशिशेखर और उनकी रानी मैनासुन्दरीके वर्णनके पश्चात् उस नगरके श्रेष्ठि जीवदेव और उनकी पत्नी जीवनजसाके सौन्दर्यका वर्णन किया गया है। प्रभुभक्तिके प्रसादसे जीवनजसा एक सुन्दर पुत्रको जन्म देती है, जिसका नाम जिनदत्त रखा जाता है । जिनदत्तके वयस्क होनेपर उसका विवाह चम्पानगरीके सेठकी सुन्दरी कन्या विमलमतीके साथ सम्पन्न होता है । जिनदत्त धनोपार्जनके लिए अनेक व्यापारियोंके साथ समुद्र यात्रा करता हुआ सिंहलद्वीप पहुँचता है और वहाँके राजाकी सुन्दरी राजकुमारी श्रीमती उससे प्रभावित होती है । दोनोंका विवाह होता है। जिनदत्त श्रीमतीको जिनधर्मका उपदेश देता है । कालान्तरमें वह प्रचुर धन सम्पत्ति अर्जित कर अपने साथियोंके साथ स्वदेश लोटता है । ईर्ष्या के कारण उसका एक सम्बन्धी धोखे से उसे एक समुद्र में गिरा देता है और स्वयं श्रीमतीसे प्रेमका प्रस्ताव करता है । श्रीमती शीलव्रतमें दृढ़ रहती है । जहाज चम्पानगरी पहुँचता है और श्रीमती बाँके एक चैत्यमें ध्यानस्थ हो जाती है । जिनदत्त भी भाग्यसे बचकर मणिद्वीप पहुँचता है और वहाँ श्रृंगारमतीसे विवाह करता है । वह किसी प्रकार चम्पानगरी में पहुँचता है और वहाँ श्रीमती और विमलवतीसे भेंट करता है और उनको लेकर अपने नगर वसन्तपुरमें चला आता है। माता-पिता पुत्र और पुत्रवधुओंको प्राप्तकर प्रसन्न होते हैं । आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक १७५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy