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तेरह-सय-तेरह उत्तराले, परिगलिय - विक्कमाइच्चकाले । संवेयर इह सव्वहं समवख, कत्तिय मासम्मि असे पवखे । सत्तमि दिणे गुरुवारे समोप अमिरले सहि-जोग ! नव-भास रयते पायडत्थु सम्मत्तउ कमे कमे एहु सत्थु । - 'अणुव्रतरत्नप्रदीप', अन्तिम प्रशस्ति ।
वि० सं० १३१३ कार्तिक कृष्ण सप्तमी गुरुवार, पुष्य नक्षत्र, साध्य योग में नौ महीने में यह ग्रन्थ लिखा गया ।
कविने 'जियन्तकहा' में रचनाकालका उल्लेख करते हुए लिखा है
चारसय सत्तरयं पंचुत्तरयं विक्कमकाल- विइत्तउ ।
पढमपक्ख रविवारए छठि सहारण, पुसमासि संमतिउ ||
अर्थात् वि० सं० १२७५ पौष कृष्णा षष्ठी रविवारके दिन इस कथाग्रन्थकी रचना समाप्त हुई । इस प्रकार कविका साहित्यिक जीवन वि० सं० १२७५ से आरम्भ होकर वि० सं० १३१३ तक बना रहता है । कविने प्रथम रचना लिखने के पश्चात् द्वितीय रचना ३८ वर्षके पश्चात् लिखी है । यही कारण है कि कविको चिन्ता उत्पन्न हुई कि उसको कवित्वशक्ति क्षीण हो चुकी है । अतएव रात्रिमें शासन-देवताका स्वप्नमें दर्शन कर पुनः काव्य-रचनामें प्रवृत्त हुआ ।
कविके आश्रयदाता चौहानवंशी राजा आहह्वमल्ल थे । आहवमल्लने मुसलमानोंसे टक्कर लेकर विजय प्राप्त की और हम्मीरवीरकी सहायता की । हम्मीर देव रणथम्भौरके राजा थे । अल्लाउद्दीन खिलजीने सन् १२९९ में रणथम्भौर पर आक्रमण किया और इस युद्धमें हम्मीरदेव काम आये । इस प्रकार आहवमल्लके साथ कविकी ऐतिहासिकता सिद्ध हो जाती है।
तिनगढ़ या त्रिभुवनगिरिमें यदुवंशी राजाओंका राज्य था । कवि लाखू इसी परिवार से सम्बद्ध था । ऐतिहासिक दृष्टिसे मथुराके यदुवंशी राजा जयेन्द्रपाल हुए और उनके पुत्र विजयपाल । इनके उत्तराधिकारी धर्मपाल और धर्मपालके उत्तराधिकारी अजयपाल हुए । ११५० ई० में इनका राज्य था । उनके उत्तराधिकारी कुँवरपाल हुए । वस्तुतः अजयपाल के उत्तराधिकारी हरपाल हुए ये हरपाल उनके पुत्र थे महावनमें ई० सन् १९७० का हरपालका एक अभिलेख मिला है' । हपालके पुत्र कोषपाल थे, जो लाखूके पितामहके
१. दो स्ट्रगल फॉर इम्पायर, भारतीय विद्याभवन, बम्बई, प्रथम संस्करण, पृ० ५५ ॥ १७४ तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य - परम्परा