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के निरूपण करनेका अनुरोध किया। ___ इससे यह सिद्ध होता है कि कवि त्रिभुवनगिरिसे आकर रायद्दिय नगरीमें रहने लमा था। यह रायबदिय आगरा और बांदीकुईके बीच में विद्यमान है ।' इससे ज्ञात होता है कि कविका वंश रायबहियमें भी रहा है। श्री डा. देवेन्द्रकुमार शास्त्रीने लिखा है कि "यदि जिनदत्तकथा बिल्लरामपुरवासी जिनधरके पुत्र श्रीधरके अनुरोध और सुख-सुविधा प्रदान करने पर लिखी गई, तो अणुप्रतरत्न प्रदीप आहृवमल्लके मन्त्री कृष्णके आश्रयमें तथा उन्हींके अनुरोधसे चन्द्रवाडमगरमें रचा गया । आहवमल्लको वंश-परम्परा भी चन्द्रवाड नगरसे बतलायी गयी है। इससे स्पष्ट है कि सं० १२७५ में कवि सपरिवार बिल्लरामपुरमें था और सं० १३१३ में चन्द्रवाडनगर ( फिरोजाबादके ) पासमें । यदि हम कविका जन्म तिहनगढ़में भी मान लें तो फिर रायद्दियमें वह कब रहा होगा। हमारे विचारमें लालू के बाबा रायड्डियके रहने वाले होंगे 1 किसी समय तिहनगढ़ अत्यन्त समृद्ध नगर रहा होगा। इसलिए उससे आकर्षित हो वहाँ जाकर बस गये होंगे । किन्तु तिहनगढ़के भग्न ही जाने पर वे सपरिवार बिल्लरामपुरमें पहुँच कर रहने लगे होंगे। संभवतः वहीं लाखूका जन्म हुआ होगा। और श्रीधरसे गाढ़ी मित्रता कर सुखस समय बिताने लगे होंगे। परन्तु श्रीधरके देहावसान पर तथा राज्याश्रयके आकर्षणसे चन्द्रवाडनगरीमें बस गये होंगे।"
उपर्युक्त उद्धरणसे यह निष्कर्ष निकलता है कि कवि लक्खणने अणुव्रतरत्नप्रदीपकी रचना रायड्डिय नगरीमें की और 'जिनदत्तकथा'की रचना बिल्लरामपुरमें की होगी।
कवि अपने समयका प्रतिभाशाली और लोकप्रिय कवि रहा है। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त स्निग्ध और मिलनसार था। यही कारण है कि श्रीधर जैसे व्यक्तियोंसे उसकी गाढ़ी मित्रता थी। जिनदत्तकथाके वर्णनोंसे यह भी प्रतीत होता है कि कवि गृहस्थ रहा है। प्रभुचरणोंका भक्त रहने पर भी वह कर्मसिद्धान्तके प्रति अटूट विश्वास रखता है । शील-संयम उसके जीवन के विशेष गुण हैं। स्थिति-काल ___ कविने 'अणुव्रतरत्न-प्रदीप में उसके रचना-कालका उल्लेख किया है१. अणुव्रतरत्नप्रदीप, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग ६, किरण ३, पृ० १५५-१६० । २. भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश-कयाकाव्य, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, भारतोयज्ञानपीठ
प्रकाशन, पृ० २१२।
आचार्यतुल्य कान्यकार एवं लेखक : १७३