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आदिके चित्रण के साथ पात्रोंकी भावनाओंका भी झंकन किया है । प्रद्य म्नका अपहरण होनेपर रुक्मिणी विलाप करती है । कविने इस संदर्भ में करुण रसका अपूर्व चित्रण किया है। प्रद्युम्न लौट आनेपर सत्यभामा और रुक्मिणीसे मिलते हैं। रुक्मिणोके समक्ष वे अपनी बाल-क्रीड़ाओं का प्रदर्शन करते हैं। इस संदर्भमें कविने भावाभिव्यंजनपर पूरा ध्यान रखा है। काव्यके आरंभमें कवि कृष्ण और सत्यभामाका बस्तुरूपात्मक चित्रण करता हुआ कहता हैपत्ताचाणउर चिमढणु, देवई-णंदणु, संख-चक्क-सारंगधरु ।
रणि कंस-खयंकरु, असुर-भयंकरु, वसुह-तिखंडहं गहियकरु ।।१-१२ रजी दाणव माणव दलइ दप्पु, जिणि गहिउ असुर-गर-खयर-कप्पु । पव-णव-जोवण सुमणोहराई, चक्कल-धण पौणपउउंहराई। छण इंदविवसम बयणियाहं, कुवलय-दल-दोहर-णयणियाहं । केकर-हार-कुंडल-धराह, कण-कण-कणंत कंकण कराहं । कयर खोलिर पयणेउराह, सोलह सहसई अंतेउराह । तह मज्झि सरस ताम रस मुहिय, जा विज्जाहरहंसु केउ दुहिय । सई सव्वसुलक्खणसुस्सहाव, णामेण पसिद्धिय सच्चहाव । दाडिमकुसुमाहरसुद्धसाम, अइविय उर मणणिरु मज्झ खाम । ता अग्गमहिसि तहो सुंदरास, इंदाणि व सग्गि पुरंदरासु । १-१३ इस काव्यमें रस-अलंकार आदिका भी समुचित समावेश हुआ है।
लाखू पं० लाखू द्वारा विरचित 'जिनदत्तकथा' अपभ्र शके कथा-काव्योंमें उत्तम रचना है। कविने अपने लिए 'लक्खण' शब्द का प्रयोग किया है। पर लक्ष्मण रत्नदेवके पुत्र हैं और पुरवाडवंयमें उत्पन्न हुए हैं। किन्तु लाखूका जन्म जायसवंशमें हुआ है । अतएव लक्ष्मण और लाखू दोनों भिन्न कालके भिन्न कवि हैं ।
कवि लाखू जायस या जयसवालवंशमें हुए थे। इनके प्रपितामहका नाम कोशवाल था, जो जायसवंशके प्रधान तथा अत्यन्त प्रसिद्ध नरनाथ थे। कविने उनका निवास त्रिभुवनगिरि कहा है । यह त्रिभुवनगढ़ या तिहुनगढ़ भरतपुर जिलेमें बयानाके निकट १५ मील पश्चिम-दक्षिणमें करौली राज्यका प्रसिद्ध तानगढ़ है। इस दुर्गका निर्माण और नामकरण परमभट्टारक महाराजाधिराज त्रिभुवनपाल या तिहुणपालने किया था । इसीलिए यह तिहुनगढ़ १. डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, जैन सन्देश, शोधांक २, १८ दिसम्बर १९५८, पृ० ८१ ।
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