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अर्णोराज इन तीनोंने मिलकर कुमारपालके विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त की। पर उनका प्रयत्न सफल नहीं हो सका। कुमारपालने विक्रमसिंहका राज्य उसके भसीजे यशोधवलको दे दिया, जिसने बल्लालको मारा था। इस प्रकार मालवाको गुजरातमें मिलानेका यत्न किया गया ।'
कुमारपालका राज्यकाल वि० सं० ११९९ से १२२९ तक रहा है। अतः बल्लालकी मृत्यु ११५१ ई० वि० सं० १२०८) से पूर्व हुई है।
ऊपरके विवेचनसे यह स्पष्ट है कि कुमारपाल, यशोधवल, बल्लाल और अर्णोराज ये सब समकालीन हैं। अतः ग्रंथ-प्रशस्तिगत कथनको दृष्टि में रखते हुए यह प्रतीत होता है कि प्रद्य म्नुचरितकी रचना वि० सं० १२०८ से पूर्व हो चुकी थी। अतएव कवि सिंहका समय विक्रमको १२ वीं शतीका आन्तम पाद या विक्रमकी १३ वीं शतीका प्रारम्भिक भाग है। डॉ. हीरालालजी जैनने 'पज्जुण्णचरिउ'का रचनाकाल ई० सन्की १२ वीं शतीका पूर्वार्द्ध माना है। पं० परमानन्दजी और डा. जैनके तथ्योंपर तुलनात्मक दृष्टि से विचार करनेपर डॉ जैन द्वारा दिये गये तथ्य अधिक प्रामाणिक प्रतीत होते हैं। रचना
कचिकी एकमात्र रचना प्रद्युम्नचरित है | इसमें २४ कामदेवोंमेंस २१ वें कामदेव कृष्णपुत्र प्रद्युम्नका चरित निबद्ध किया है। यह १५ सन्धियों में विभक्त है । रुक्मिणीसे उत्पन्न होते ही प्रद्य म्नको एक राक्षस उठाकर ले जाता है। प्रद्युम्न वहीं बड़े होते हैं। और फिर १२ वर्ष पश्चात् कृष्णसे आकर मिलते हैं। कविने परम्परानुसार जिनवन्दन, सरस्वतीचन्दनके अनन्तर आत्मविनय प्रदर्शित की है | बह सज्जन-दुर्जनका स्मरण करना भी नहीं भूलता | कविने परिसंख्यालकार द्वारा सौराष्ट्र दशका बहुत हो सुन्दर चित्रण किया है। लिखा है--
मय संग करिणि जहिं वेए कंडु, खरदंडु सरोरुहु ससि सखंडु । जहिं कव्वे बंधु विग्गहु सरीरु, धम्माणुरत्तु जणु पावभीरु । थदृत्तणु मलणु- वि मणहराहं, वरतरुणी पीणवण यण हराह । ह्य हिंसणि रायणि हेलणेसु, खलि विगयणेहु तिल-पीलणेसु । मज्झण्णयाले गुणगणहराहे, परयारगमणु • जहिं मुणिवराहं । पिय विरहु विजहिं कडु व उकसाज, कृडिल विज्जुब इहि कुंतलकलाउ॥१५॥
वस्तु-वर्णनमें कवि पटु है । उसने नाम, नगर, ऋतु, सरोवर, उपवन, पर्वत 1. Epigraphica Indica V. LVIII P. 200 । १७० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा