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कई सिद्धहो विरयंतही विणासु, संपत्त कम्मवसेण तासु
साथ ही अन्तिम प्रशस्तिके परकज्जं परकल्वं विडतं जेहि उद्धरियं से भी उक्त आशय की सिद्धि होती है। श्री हरिवंश कोछड़ने भी इसी तथ्यको स्वीकार किया है !"
स्थितिकाल
कवि सिंहने 'पज्जुष्णचरिउ' के रचनाकालका निर्देश नहीं किया है । पर ग्रन्थ- प्रशस्ति में बह्मणवाड नगरका वर्णन करते हुए लिखा है कि उस समय वहाँ धोका था, जो अर्णोराजको क्षय करने के लिये कालस्वरूप था और जिसका माण्डलिकभृत्य गुहिलवंशीय क्षत्रिय भुल्लण ब्रह्मणवाडका शासक था । प्रशस्ति में लिखा है
सरि-सर-णंदण-वण-संछण्णउ, मठ-विहार - जिण-भवण- खण्णउ । बम्हणवाडउणा में पट्टणु, अरिणरणाह सेणदलवदृणु । जो भुजइ अरिणखयकालही, रणधोरियहो सुअहो बल्लालहो । जासु भिच्चु दुज्जण मण सल्लणु, खत्तिउ गुहिल उत्तु जहि भुल्लणु ।
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- प्रद्युम्नचरित, प्रशस्ति ।
पर इस उल्लेख परसे राजाओंके राज्यकालको ज्ञातकर कुछ निष्कर्ष निकाल सकना कठिन है ।
मन्त्री तेजपाल द्वारा आबूके लूणवसतिचेत्यमें वि० सं० १२८७ के लेखमें मालबाके राजा बल्लालको यशोधवलके द्वारा मारे जानेका उल्लेख आया है । यह यशोधनल विक्रमसिंहका भतीजा था और उसके कैद हो जानेके पश्चात् राजगद्दी पर आसीन हुआ था। यह कुमारपालका माण्डलिक सामन्त अथवा भूत्य था । इस कथनकी पुष्टि अंचलेश्वर मन्दिरके शिलालेख से भी होती है ।
जब कुमारपाल गुजरातकी गद्दीपर आसीन हुआ था, तब मालवाका राजा बल्लाल चन्द्रावतीका परमार विक्रमसिंह और सपादलक्षसामरका चौहान
१. अपभ्रंश- साहित्य, दिल्ली प्रकाशन, पु० २२१ ।
बाचार्यसुष्य काव्यकार एवं लेखक : १६९