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________________ मान सत्य निकला । वहाँ पार्श्वनाथ भगवान्की मूत्ति निकली, जिसे बड़ी भक्तिसे उसी गुफामें ले आये । इस बार करकंडुने पुरानी प्रतिमाका अवलोकन किया । सिंहासनपर उन्हें एक गाँठ-सी दिखलाई पड़ी, जो शोभाको बिगाड़ रही थी । एक पुराने शिल्पकारसे पूछनेपर उसने कहा कि जब यह गफा बनाई गई थी, तब वहाँ एक जलवाहिनी निकल पड़ी थी। उसे रोकने के लिए हो वह गांठ दी गई है । करकंडुको जल बाहिनीके दर्शनका कोसुल उत्पन्न हुआ और शिल्पकारको बहुत रोकने पर भी उसने उस गांठको तोड़वा डाला। गाँठके टूटते ही वहाँ एक भयंकर जलप्रवाह निकल पड़ा, जिसे रोकना असंभव हो गया । गुफा जलसे भर गई। करकंडुको अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा। निदान एक विद्याधरने आकर उसका सम्बोधन किया, उस प्रवाहको रोकनेका वचन दिया तथा उस गुफाके बननेका इतिहास भी कह सुनाया। दस निवासके सुनले अनन्ता नहुने हो दो गुमाएं और बनवाई । इसी बीच एक विद्याधर हाथीका रूप धरकर आया और करकंडुको भुलाकर मदनावलीको हरकर ले गया । ___ करकंडु सिंहलद्वीप पहुंचा और वहाँको राजपुत्री रतिवेगाका पाणिग्रहण किया। जब वह जलमार्गसे लौट रहा था, तो एक मच्छने उसकी नौकापर आक्रमण किया | वह उसे मारने समुद्र में कूद पड़ा । मच्छ मारा गया, पर वह नावपर न बा सका । उसे एक विद्याधरपुत्री हरकर ले गयी। रतिवेगाने किनारेपर आकर, शोकसे अधीर हो पूजा-पाठ प्रारंभ किया जिससे पद्मावतीने प्रकट हो उसे आश्वासन दिया | उधर विद्याधरोने कररंडुसे विवाह कर लिया और नववत्रु सहित रतिवेगासे आ मिला। ____ करकंडुने चोल, चेर और पांडय नरेशोंको सम्मिलित सेनाका सामना किया और उन्हें हराकर प्रण पूरा किया। जब वह लौटकर पुनः तेरापुर आया, तो कुटिल विद्याधरने मदनावलीको लाकर सौंप दिया। वह चम्पापुरी आकर सुख-पूर्वक राज्य करने लगा। ___ एक दिन बनमालीने आकर सूचना दी कि नगरके उपवनमें शीलगुप्त नामक मुनिराज पधारे हैं। राजा अत्यन्त भक्तिभावसे पुरजन-परिजन सहित उनके चरणोंमें उपस्थित हुआ और अपने जीवनसम्बन्धी अनेक प्रश्न पूछे। राजा मुनिराजसे अपने पूर्व जन्मोंकी कथाओंको सुनकर विरक्त हो गया और अपने पुत्र वसुपालको राज्य दे मुनि बन गया। रानियाँ और माता पद्मावती भी आर्यिका हो गई । करकंडुने घोर तपश्चरणकर मोक्ष प्राप्त किया । चरितनायकको कथाके अतिरिक्त अवान्तर ९ कथाएं भी आयी हैं | प्रथम आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १६३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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