SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चार कथाएं द्वितीय सन्धिमें वर्णित हैं। इनमें क्रमशः मन्त्रशक्तिका प्रभाव, अज्ञान से आपत्ति, नीचसंगतिका बुरा परिणाम और सत्संगतिका शुभ परिणाम दिखाया गया है। पांचवीं कथा एक विद्याधरने मदनाचलीके विरहसे व्याकुल करकंडुको यह समझाने के लिए सुनाई कि वियोगके बाद भी पति-पत्नी का सम्मिलन हो जाता है। छठो कथा पाँचवीं कथाके अन्तर्गत ही आई है। सातवीं कथा शुभ शकुनका फल बतलाने के लिये कही गई है । आठवीं कथा पद्मावतीने समुद्र में विद्याधरी द्वारा करकंडुके हरण किये जानेपर शोकाकुला रतिवेगाको सुनाई है । नवीं कथा आठवीं कथाका प्रारंभिक भाग है, जो एक तोतेकी कथाके रूपमें स्वत्तन्त्र अस्तित्व रखती है । ये कथाएं मूलकथाके विकासमें अधिक सहायक नहीं हो पातीं। इनके आधारपर कविने कथावस्तुको रोचक बनानेका प्रयास किया है। वस्तुमें रसोत्कर्ष, पात्रोंको चरित्रगत विशेषता और काव्योंमें प्राप्य प्राकृतिक दृश्यों के वर्णनके अभावको कविने भिन्न-भिन्न कथाओंके प्रयोग द्वारा पूरा करनेका प्रयत्न किया है । करकंदुचरिउ धार्मिक कथा-काव्य है । इसमें अलौकिक और चमत्काकपूर्ण घटनाओंके साथ काव्यत्तत्त्व भी प्रचुररूपमें पाये जाते हैं । इस काव्यमें मानव जगत और प्राकृतिक जगत दोनों का वर्णन पाया जाता है । करकडुके दन्तिपुरमें प्रवेश करनेपर नगरकी नारियोंके हृदयकी व्यग्रता विचित्र हो जाती है । यह वर्णन काव्यको दृष्टिसे बहुत ही सरस और आकर्षक है " तहिं पुरवरि खुहियउ रमणियाउ झाणट्टिय मुणि-मण-दमणियाउ । कवि रहसई तरलय चलिय णारि बिउफ्फउ संठिय का विदारि । क विधाasara गेहलुद्ध परिहाणु ण गलियउ गणइ मुद्ध | कवि कज्जल बलहउ अहरे देइ णयगुल्लाएं लक्खारसु करेइ । frieवत्ति कवि अणुसरेद्र विवरीउ डिंभु के विकडिहिँ लेइ । कवि उरु करयलि करइ बाल, सिरु छंडिवि कडियले धरह माल । णिय-दर मणिविक वि वराय मज्जारु ण मेल्लइ साणुराय । कवि धावद वणिउ मणे घरति बिलंघल मोहइ घर सरंति । घप्ता - कवि माणमहल्ली मयणभर करकंडहो समुहिय चलिय । थिर-थर-पओहरि मयजयण उत्तप्त-कणयछवि उज्जलिय ॥२॥ अर्थात् करकंडुके आगमन पर ध्यानावस्थित मुनियोंके मनको विचलित १६४ : तीथंकर महावीर कोर उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy