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पतिके साथ एक हाथीपर सवार होकर नगरका परिभ्रमण करे । राजाने रानी: का दोहलापूर्ण करनेके लिए वैसा ही प्रबन्ध किया, पर दुष्ट हाथी राजा-रानीको लेकर जंगलकी ओर भाग निकला। रानीने समझा-बुझाकर राजाको एक वृक्षकी डाली पकड़कर अपने प्राण बचाने के लिए राजी कर लिया। और स्वयं उस हाथीपर सवार रहकर जंगल में पहुंची । वह हाथी एक जलाशयमें घुसा । रानीने कूदकर अपने प्राण बचाये ! जब वह बनमें पहुंची, तो सूखा हुआ वह बन हराभरा हो गया । इस समाचारको प्राप्तकर वनमाली वहां आया और उसे बहन बनाकर अपने साथ ले गया। मालिनको पद्मावतीके रूपपर ईष्या हुई और उसने किसी बहानेसे उसे अपने घरसे निकाल दिया । निराश होकर रानी श्मशानभूमिमें आई और वहीं उसे पुत्र उत्पन्न हुआ।
मुनिके अभिशापसे मातंग बने हुए विद्याधरने उस पुत्रको ग्रहण कर लिया और अभिशापकी बात बतलाकर रानीको उसने आश्वस्त किया। मातंगने उस बालकको शिक्षित किया | हाथमें कंडु-सूखो खुजली होने के कारण उसका नाम 'करकंडु' पड़ गया । जब यह युवावस्थाका प्राप्त हुआ, त दन्तीपुरके राजाका परलोकवास हो गया । मन्त्रियोंने देवी विधिसे उत्तराधिकारीका चयन करना चाहा और इस विधिमें करकंडुकी राजा बना दिया गया ।
करकंडुका विवाह गिरिनगरकी राजकुमारी मदनावलीसे हुआ। एक बार उसके दरबारमें चम्पाके राजाका दूत आया, जिसने उससे चम्पानरेशका आधिपत्य स्वीकार करनेकी प्रेरणा की। करकंडु कोधित हुआ और उसने तत्काल चम्पापर आक्रमण कर दिया। दोनों ओरसे घमासान युद्ध होने लगा । अन्तमें पद्मावतीने रणभूमिमें उपस्थित होकर पिता-पुत्रका सम्मेलन करा दिया । धाड़ीवाहन पुत्ररत्नको प्राप्त कर बहुत हर्षित हुआ और वह चम्पाका राज्य करकांडुको सौंप दीक्षित हो गया। एक बार करकंडुने द्रविड़ देशके चोल, चेर और पाण्ड्य नरेशोंपर आक्रमण किया । मार्ग में वह तेरापुर नगरमें पहुँचा । वहाँके राजा शिवने भेंट की और आकर बताया कि वहाँसे पास ही एक पहाड़ोके चढ़ावार एक गुफा है तथा उसी पहाड़ाके कपर एक भारी बामी है, जिसकी पूजा प्रतिदिन एक हाथी किया करता है। यह सुनकर करकंडु शिवराजाके साथ उस पहाड़ीपर गया । उसने गुफामें भगवान् पाश्वनाथका दर्शन किया और ऊपर चढ़कर बामीको भी देखा । उनके समक्ष ही हाथीने आकर कमल-पुत्रोंसे उस बामोकी पूजा की | करकंडुने यह जानकर कि अवश्य ही यहां कोई देव-मूर्ति होगी, उस बामीको खुदवाया । उसका अनु१६२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा