SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'करकंडुचरिउ'को अन्तिम प्रशस्तिमें विजयपाल, भूपाल और कर्ण इन तीन राजाओंका उल्लेख आता है । इतिहास बतलाता है कि विश्वामित्र-गोत्रके क्षत्रीयवंशमें विजयपाल नामके एक राजा हुए, जिनके पुत्र भुवनपाल थे। उन्होंने कलचुरी, गुर्जर और दक्षिणको जोता था। एक अन्य अभिलेखसे बांदा जिलेके अन्तर्गस चन्देलोंको राजधानी कालिंजरका निर्देश मिलता है। इसमें विजयपालके पुत्र भूमिपालका तथा दक्षिण दिशा और कर्ण राजाको जीतनेका उल्लेख है। एक अन्य अभिलेख जबलपुर जिलेके अन्तर्गत तावरमें मिला है | उसमें भूमिपालके उत्पन्न होनेका उल्लेख आया है। तथा किसी सम्बन्धमें त्रिपुरी और सिंहपुरीका भी निर्देश है। यह अभिलेख ११वीं-१२वीं शताब्दीका अनुमान किया गया है। इन लेखोंके विजयपाल और उनके पुत्र भुबनपाल या भूमिपाल तथा हमारे ग्रन्धके विजयपाल और भूमिपाल एक ही है । कण नरेन्द्रका समावेश भी इन्हीं अभिलेखोंमें हो जाता है। ____ डॉ. जैनने इतिहासके आलोकमें विजयपाल, कीत्तिवर्मा (भुवनपाल) और कर्ण इन तीनों राजाओंका अस्तित्व ई० सन् १०४०-१०५१के आस-पास बतलाया है। अतः करकंड़चरिउका रचनाकाल ग्यारहवीं शतोका मध्यभाग सिद्ध होता है। प्रशस्तिके अनुसार पुष्पदन्तके पश्चात् अर्थात् ९६५ ई० के अनन्तर और १०५१ ई० के पूर्व कनकामरका समय होना चाहिए। वि० सं० १०९७ के लगभग कालिंजरमें विजयपाल नामक राजा हुआ । यह प्रतापी कलचुरोनरेश कण देवका समकालीन था। इसके पुत्र कोत्तिवर्माने कर्णदेवको पराजित किया था। अतएव मुनि कनकामरका समय वि० की १२वीं शताब्दी है। 'करकंडुचरिउ' १० सन्धियों में विभक्त है। इसमें करकण्डु महाराजकी कथा वर्णित है । कथाका सारांश निम्न प्रकार है____अंगदेशकी चम्पापुरी नगरीमें धाडीवाहन राजा राज्य करता था। एक बार वह कुसुमपुरको गया और वहां पद्मावतो नामको एक युवतीको देखकर उसपर मोहित हो गया । युवतीका संरक्षक एक माली था, जिससे बातचीत करनेपर पता लगा कि यह युवती यथार्थमें कोशाम्बोके राजा वसुपालकी पुत्री है । जन्म समयके अपशकुनके कारण पिताने उसे यमुना नदीमें प्रवाहित कर दिया था। राजपुत्री जानकर धाडीवाहनने उसका पाणिग्रहण कर लिया । और उमे चम्पापुरी में ले आयर | कुछ काल पश्चात् यह गर्भवती हुई और उसे यह दोला उत्पन्न हुआ कि मन्द-मन्द बरसातमें वह नररूप धारण करके अपने १. करकंडुधरिउ, प्रस्तावना पृ० ११-१२ । माचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १६१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy