________________
कालके समीप श्रीभूषण और उनके शिष्य मंगलदेवका अस्तित्व सिद्ध हो जाय, तो उनकी परमा सामान और नलिटर मापके साथ जोड़ी जा सकती है। ___ 'करकंडुचरिउ'की रचना 'आसाइय'नगरीमें रहकर कविने की है । कारंजाकी प्रतिमें 'आसाइय' नगरी पर 'आशापुरी' टिप्पण मिलता है, जिससे जान पड़ता है कि उस नगरीको आशापुरी भी कहते थे। ___ इटावासे ९ मीलकी दूरी पर आसयखेड़ा नामक ग्राम है । यह ग्राम जैनियोंका प्राचीन स्थान है। आसइ गाँव एक मंचे खेड़ेपर बसा हुआ है, जिसके पश्चिमी ओर विशाल खण्डहर पड़े हुए हैं। उस पर बहुत दिगम्बर जैन प्रतिमाएं विखरी हुई मिलती हैं। यह आसाइय ग्राम अपने दुर्गके लिए प्रसिद्ध था । इसे चन्द्रपालने बनवाया था। मुनि कनकामरने आसाइय नगरीमें आकर अपने 'करकंडुचरिउ' की रचना की थी, जहाँके नरेश विजयपाल, भूपाल और कर्ण थे । अतः संभव है कि यह असाइयनगरी वर्तमान आसयखेड़ा ही हो।
ई. सन् १०१७में मुहम्मद तुगलकने मथुरासे कक्षौज तक आक्रमण किया था। इटावाके पास मुंजके किले में हिन्दुओंसे उसका जबरदस्त संघर्ष हुआ । वहाँसे सुल्तानने आसइके दुर्गपर आक्रमण किया। उस समय आसइका शासक चाण्डाल भोर था । मुसलमानलेखकोंने लिखा है कि मुहम्मद तुगलकने पाँचों किलोको गिरवाकर मिट्टीमें मिला दिया। अतः यह संभव नहीं कि ई० सन् १०१७के पश्चात् कनकामर उसका उल्लेख नगरीके रूपमें करें। ___ डॉ. जैनने भोपालके समीप आसापुरीनामक ग्रामका उल्लेख किया है। वहाँ आशापुरीदेवीकी असाधारण मूत्ति विद्यमान है । संभवतः इसीपरसे इस ग्रामका नाम आशापुर पड़ा होगा। वहाँ एक जैन मन्दिरके भी भग्नावशेष प्राप्त हैं। उनमें एक १६ फुट ऊंची शान्तिनाथ तीर्थंकरको प्रतिमा भी है। डॉ० जैन इसी आशापुरीको कनकामरके द्वारा उल्लिखित आसाइय मानते हैं। स्थितिकाल
कवि कनकामरने ग्रंथके रचनाकालका उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने अपनेसे पूर्ववर्ती सिद्धसेन, समन्तभद्र, अकलंक, जयदेव, स्वयंभू और पुष्पदन्तका उल्लेख किया है । पुष्पदन्तने अपना महापुराण ई० सन् ९६५में समाप्त किया था । अतएव करकंडुचरिउकी रचना ई० सन् ९६५के पहले नहीं हो सकती है । इस ग्रंथको प्राचीन हस्तलिखित प्रति वि० सं० १५०२को उपलब्ध है। अत: कविका समय सं० १५०२के पश्चात् भी नहीं हो सकता है।
१६० : तीर्थंकर महावीर और उनकी पाचार्य-परम्परा