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६. धर्मोपदेश-चूडामणि (धम्मोवएसचूडामणि) ७. ध्यान-प्रदीप (माणपई)
८. छक्कम्मुवएस (षट्कर्मोपदेश) मिणाहरित
इस ग्रंथमें २५ सन्धियाँ है, जिनकी श्लोकसंख्या लगभग ६,८९५ है । इसमें २वें तीर्थकर नेमिनाथका जीवन-चरित गुम्फित है। प्रसंगबंश कृष्ण और उनके चचेरे भाइयोंका भी जीवन-चरित पाया जाता है। इस ग्रंथको कविने वि० सं० १२४४ भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशीको समाप्त किया है । वि० सं० १५१२ को इसकी प्रति सोनागिरके भट्टारकीय शास्त्रभंडारमें सुरक्षित है।
षटकर्मोपवेश-इस ग्रंथमें १४ सन्धियाँ और २१५ कड़वक हैं। इसका कुल प्रमाण २०५० श्लोक है । कविने इस ग्रंथमें गृहस्थोंके षट्को -१. देवपूजा, २. गुरुसेवा, ३. स्वाध्याय, ४. संयम, ५. षटकायजीवरक्षा और ६. दानका कथन किया है ! विविध कथाओंके सरस विवेचन द्वारा सात तत्वोंको स्पष्ट किया गया है। द्वितीय सन्धिसे ९वीं सन्धि तक देवपूजाका विवेचन आया है और उसे नूतनकथारूप दृष्टान्तोंके द्वारा सुगम तथा प्राय बना दिया गया है। दशवी सन्धिमें जिनपूजाकी कथा दी गई है। और उसकी विधि बतलाकर उद्यापनविधिका भी अंकन किया गया है। ११वीं सन्धिसे १४वीं सन्धि तक इन चार सन्धियोंमें पूजा-विधिके अतिरिक शेष पाँच कर्मोंका विवेचन किया गया है। षट्कर्मोपदेशकी रचनाके प्रेरक अम्बाप्रसाद बतलाये गये हैं। ये नागरफुलमें उत्पन्न हुए थे। इनके पिताका नाम गुणपाल
और माताका नाम पचिणी था। यह ग्रंथ उन्हींको समर्पित किया गया है । प्रत्येक सन्धिके समातिसूचक पुष्पिकावाक्यमें इनका नाम स्मरण किया है । कहींकहीं अमरकीर्तिने अम्बाप्रसादको अपना लघु बन्धु और अनुजबन्धु भी कहा है। इससे अनुमान होता है कि कवि अमरकीति भी इसी कुलमें उत्पन्न हुए थे और अम्बाप्रसादके बड़े भाई थे।
कविने इस ग्रंथकी समाप्ति गुर्जर विषयके मध्य महीयड (महीकांडा) देशके गोदइय (गोध्रा) नामक नगरके आदीश्वर चैत्यालयमें बैठकर की है। स्पष्टतः 'गुर्जर' गुजरात प्रान्तका बोधक है । अतएव 'महीयड' देश वर्तमान महीकांठा और 'गोदय' नगर वर्तमान गोध्राका बोधक है । अम्बाप्रसाद संभवतः इसी गोध्राके निवासी थे।
कविको शेष रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं । १५८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा