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________________ षड्दर्शन के सम्मानकर्त्ता थे । क्षात्रधर्मके साथ धर्म, परोपकार और दानमें उनकी प्रवृत्ति थी । उनके राज्य में दुःख दुर्भिक्ष और रोग कोई जानता ही न था। इस प्रकार ऐतिहासिक निर्देशोंसे भी कविका समय षट्कर्मोपदेशमें उल्लिखित समय के साथ मिल जाता है । गुरुपरम्परा के अनुसार भी यह समय घटित हो जाता है। अमितगति आचार्यका समय वि० सं० १०५० से १०७३ तक है। इनकी पांचवीं पोढ़ीमें अमरकीति हुए हैं । यदि प्रत्येक पीढोका समय ३० वर्ष भी माना जाय, तो अमरकीत्तिका समय वि० सं० १२२३ के लगभग जन्मकाल आता है । षट्कर्माप्रदेशको रचना के समय कविकी उम्र २५-३० वर्ष भी मान ली जाय, तां षट्कर्मोपदेश के रचनाकालके साथ गुरुपरम्पराका समय सिद्ध हो जाता है । अतएव कवि अमरकीत्तिका समय वि० की १३वीं शती सुनिश्चित हैं। 'षट्कर्मोपदेश' में कविको आठ रचनाओंका उल्लेख प्राप्त होता है । लिखा है परमेसरप नवरस भरिउ विरइयउ मिणाह्हो चरिउ । अणु वि चरितु सव्वत्य सहिउ पयडत्यु महावीरहो विहिउ । तोयउ भरित जसहर पिना डिला बंधे किय प्यासु ! टिप्पणउ धम्मचरियहो पयडु तिह विरइउ जिह बुज्इ जडु | सक्कय- सिलोय - विहि-जणियविही गुफियउ सुहासिय रयण - णिही । धम्मो एस- चूडामणिवस्तु तह झाणपईज जि झार्णासक्खु । छक्कम्मुवएसे सहुं पबंध किय अट्ठ संख सई सच्चसंघ १६ १० P अर्थात् नवरसोंसे युक्त 'मिणाहचरिउ', श्लेष अर्थ युक्त 'महावीरचरिउ', पद्धड़िया छन्द में लिखित 'जसहचरिउ' जड़ बुद्धियोंको भी बोध प्रदान करने वाला 'धर्मचरित' का टिप्पण, संस्कृत श्लोकोंकी विधि द्वारा आनन्द उत्पन्न करनेवाला 'सुभाषितरत्ननिधि', 'धर्मोपदेशचूडामणि' ध्यानकी शिक्षा देनेवाला 'ध्यानप्रदीप' और बदकमका परिज्ञान करानेवाला 'षट्कर्मोपदेश' ग्रंथ लिखे हैं । इस आधार पर कविको निम्नलिखित रचनाएँ सिद्ध होती हैं " १. मिणा चरिउ (नेमिनाथचरित) २. महावीर चरिउ ( महावीर चरित) ३ जसहर चरिउ ( यशोधरचरित) ४. धर्मवरित - टिप्पण ५. सुभाषितरत्न - निवि आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : १५७
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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