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अमरकोत्तिका व्यक्तित्व दिगम्बर मुनिका व्यक्तित्व है। वे संयमी, जितेन्द्रिय, शीलशिरोमणि, यशस्वी और राजमान्य थे। उनके त्याग और वैदुष्य के समक्ष बड़े-बड़े राजागण नतमस्तक होते थे । वस्तुत: अमरकीति भी अपनी गुरुपरम्परा के अनुसार प्रसिद्ध कवि थे ।
अमरकीत्तिने अपनी गुरु-परम्परा में हुए चन्द्रकीति मुनिको अनुज, सहोदर और शिष्य कहा है। इससे यह ध्वनित होता है कि चन्द्रकीति इनके समे भाई थे ।
स्थितिकाल
कविने 'षट्कर्मोपदेश' ग्रंथकी प्रशस्ति में इस ग्रंथका रचनाकाल वि० सं० १२४७ भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी गुरुवार बताया है
बारह-सयहं ससत्त- चयालिहिं विक्कम संवच्छरहु विसार्लाहि । गर्याहमि भद्द्वय पक्खंतरि गुरुवारम्मि चउद्दिसि वासरि । इसके मासें इहु सम्मत्तिउ सहं लिहियउ आलसु अवहत्य | १४|१८ कविके ने गोधा में गायी कृष्णनरेन्द्रका राज्य था | इतिहाससे सिद्ध है कि इस समय गुजरातमें सोलंकी वंशका राज्य था. जिसकी राजधानी अनहिलवाड़ा थी। पर इस वंशके बंदिग्गदेव और उनके पुत्र कृष्णका कोई उल्लेख नहीं मिलता। भीम द्वितीयने अनहिलवाड़ाके सिंहासन पर वि० सं० १२३६ से १२९५ तक राज्य किया। उनसे पूर्व वहाँ कुमारपालने सं० १२०० से १२३१, अजयपालने १२३१ से १२३४ और मूलराज द्वितीयने १२३४ से १२३६ तक राज्य किया था । '
भीम द्वितीयके पश्चात् वहाँ सोलंकीवंशकी एक शाखा बाधेरवंशकी प्रतिष्ठित हुई, जिसके प्रथम नरेश विशालदेवने वि० सं० १३०० से १३१८ तक राज्य किया । अनहिलवाड़ामें वि० सं० १२२७ से हो इस वंशका बल बढ़ना आरंभ हुआ था। इस वर्ष में कुमारपालकी माताकी बहिनके पुत्र अर्णराजने अहिलवाड़ाके निकट बाघेला ग्रामका अधिकार प्राप्त किया था । ज्ञात होता है कि चालुक्यवंशकी एक शाखा महीकांढा प्रदेश में प्रतिष्ठित थी और गोदहरा गोला नगर में अपनी राजधानी स्थापित की थी । कचिने वहाँके कृष्ण नरेन्द्रका पर्याप्त वर्णन किया है । वे नीतिज्ञ, बाहरी और भीतरी शत्रुओंके विनाशक और
१. डॉ० प्रो० हीरालालजी अमरकोत्ति गणि और उनका षट्कर्मोपदेश, जैनसिद्धान्स भास्कर, भाग २, किरण २, पृ० ८३ ।
१५६ : तीथंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा