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अर्थात् वि० सं० १२०० फालाम शक्ला दशमी, रविवारके दिन यह ग्रंथ पूर्ण हुआ। इस रचनाकालके निर्देशसे यह स्पष्ट है कि इन विबुध श्रीधरका समय वि. को १३वीं शती है । आमेर-शास्त्रभण्डारकी प्रतिमें उक्त रचनाकालका उल्लेख हुआ है। पुष्पिकावाक्यमें कविने स्वनामके साथ अपने प्रेरकका नाम भी अंकित किया है
"इय सिरि-भविप्तयत्त-चरिए विवुह-सिरिसुकइसिरिहर-विरइए साहुणारायण-भज्जा-रुप्पिणि-गामांकिए भविसयत्त-उप्पत्ति-वण्णणो णाम पढमो परिच्छेओ समत्तो। सन्धि १"
कवि विवध श्रीधरने 'भविसयत्तचरिउ'की रचना कर कथा-साहित्यके विकासको एक नई मोड़ दी है 1 इस ग्रंयका प्रमाण १५३० श्लोक है।
कथावस्तु-तीर्थंकरोंको वन्दनाके पश्चात् कविने कथाका आरंभ किया है। कुरुजांगल देशमें हस्तिनापुर नामका नगर है। इस नगरमें भूपालनामका राजा राज्य करता था। राजाने नानागण-अलंकृत धनपतिको नगरसेठके पट्रपर आसीन किया । धनपतिका विवाह धनेश्वरकी रूपवती कन्या कमलश्रोके साथ सम्पन्न हुआ। कई वर्ष व्यतीत हो जानेपर भी इस दम्पतिको सन्तानलाभ न हुआ।
एक दिन उस नगरमें सुगुप्ति नामके मुनिराज पधारे । कमलश्रीने पादवंदन कर प्रश्न किया-स्वामिन् ! मुझ मन्दागिनीके पुत्र उत्पन्न होगा या नहीं ? मुनिराजने उत्तरमें पुत्रलाभ होनेका आश्वासन दिया।
कुछ समय पश्चात् धनपतिको सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ । बालकका वापिनसंस्कार सम्पन्न किया गया और उसका नाम भविष्यदत्त रखा गया । पाँच वर्ष की अवस्था में भविष्यदत्तका विद्यारंभ-संस्कार सम्पन्न हुआ और आठ वर्षकी अवस्थामें उसे उपाध्यायके यहाँ विभिन्न शास्त्रोंके अध्ययनार्थ भेज दिया।
द्वितीय परिच्छेदमें बताया है कि पूर्व जन्ममें की गई मुनिनिन्दाके फलस्वरूप धनपतिने कमलश्रोका त्याग कर दिया। कमलश्री रोती हुई अपने पिताके घर गई । धनपतिका भेजा हुमा गुणवान् पुरुष धनेश्वर के यहाँ आया
और कहने लगा कि कमलश्रीमें कोई दोष नहीं है, पर पूर्वकर्मोदयके विपाकसे धनपति इससे घृणा करता है । अतएव आप इसे अपने यहाँ स्थान दीजिए। ___ कमलश्रीके चले जानेके पश्चात् धनपत्तिने अपना द्वितीय विवाह धनदत्त सेठकी पुत्री सरूपाके साथ कर लिया । इससे बन्धुदत्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो साक्षात् कामदेवके समान था । युवा होनेपर बन्धुदत्त अपने ५०० साभियों
१४६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा