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श्रीधर द्वितीय
श्रीधर द्वितीयको भी विबुध श्रीषर कहा गया है। इन्होंने अपभ्रंशमें 'भविसयत्तचरिउ' की रचना चन्द्रवाइनगर में स्थित माथुरवंशीय नारायणके पुत्र सुपट्ट साहू' की प्रेरणासे की है। यह काव्य नारायण साहूकी भार्या रूपिणीके निमित्त लिखा गया है।'
सुपट्ट साहू नारायणके पुत्र थे। उनके ज्येष्ठ भ्राताका नाम वासुदेव था । कविने ग्रंथके अन्तमें सुपट साहू और रूपिणीकी प्रशंसा करते हुए पूरा विवरण दिया है । साहुके पूर्वज अपने समयमें प्रसिद्ध थे। उसको सीता नामक गृहिणी थी, जो विनय आदि निर्मल गुणोंसे भूषित थी। उनके हालनामक पुत्र उत्पन्न हुआ । उन दोनोंके जगविख्यात देवचन्द नामका पुत्र हुआ। वह माथुरकुलका भूषण और गुणरत्नोंकी खान था | जैनधर्ममें उसकी प्रगाढ़ श्रद्धा थी। लक्ष्मीके समान उसकी माढ़ी नामकी धर्मपत्नी थो। उसके गर्भसे काञ्चनवर्ण साधारणनामके पुत्रने जन्म लिया। उसके दो पुत्र हुए। दूसरेका नाम नारायण था । इसी नारायणकी भार्या 'रूपिणी' थी, जिसने इस अन्थको लिखवाया । नारायण के पांच पुत्र हुए | सभी गुणवान और श्रद्धालु थे।
ग्रन्थके रचयिता श्रीधर द्वितीय मुनि थे । उनका व्यक्तित्व रत्नत्रयस्वरूप था। अपने प्रेरक सुपट्ट साहकी अनन्य भक्ति, दान, पूजा, अत, आदि धार्मिक अनुष्ठानोंको कविने प्रशंसा की है। स्थितिकाल कविने 'भविसयत्तचरित' के रचनाकालका निर्देश किया हैणरणाहविक्कमाइच्चकाले, पयहत्तए सुहयारए विसाले । वारहसय बरिसहिं परिंगरहिं फागुण-मासम्मि बलक्खपाखे, दसमिहि-दिणे तिमिरुक्कर विवक्खे । रविवार समाणिउ एउ सत्थु, जिइ मई परियाणिउ सुप्पसत्थु ।
भासिउ भविस्सयत्तहो चरित्तु, पंचमि उचयासहो फलु पवित्तु । सिरिचन्दवारणयरहिएण, जिणधम्मकरणउक्कंठिएण। माहुरकुलगयणतमोहरेण, विबुह-पण-सुखयामणषणहरेण । महवरसुपट्टणामालएण विणएण भणि जोडेवि पाणि ।- भविष्यदत्तरित, १,२ । 'झ्य सिरिभविसयत्तचरिए विवृहसिरिसुकईसिरिहर-विरहए साहुणरायण-भज्जा-रुप्पिणिणामांकिए' । वही।
आचार्यतुष्य काव्यकार एवं लेखक : १४५
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