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________________ था | अतएव ऐसा प्रतीत होता था, मानों मुकुटमंडित आकाश अपना सिर धुन रहा है। वहाँके व्यापारी प्रमादरहित होकर निवास करते थे। और वे परस्त्री से विरक्त और छल-कपटसे रहित थे । वे शब्दार्थ में विचक्षण, दानशील और जिनमें आसक्त थे । वहाँके मन्दिरोंपर नीलमणिकी झालरें लटक रही थीं । इन झालरोंको मयूर कृष्ण सर्प समझकर मक्षण करनेके लिये दौड़ते थे । जहाँ स्फटिकमणिसे घटित फर्शके ऊपर स्त्रियोंके प्रतिबिम्ब पड़ते थे, जिससे भरे कमल समझकर उन प्रतिबिम्बोंके ऊपर उमड़ पड़ते थे । वहाँकी नारियाँ स्फटिक जटिल दीवालों में अपने प्रतिबिम्बोंको देखकर सपत्नीको आशंका से प्रसित हो झगड़ा करती थीं । इस नगरी में नन्दिवर्धन नामका राजा मनुष्य, देव, दानवादिको प्रसन्न करता हुआ निवास करता था । इसी प्रकार कविने युद्ध आदिका भी सुन्दर चित्रण दृष्टिसे भी यह काव्य ग्राह्य है। इसमें शान्त, भंगार सम्यकू योजना हुई है । किया है रस-योजनाको और भादों तीर्थंकर महावीरका जन्म होनेपर कल्पवासी देवगण उनका जन्माभिषेक सम्पन्न करनेके लिये हृर्षसे विभोर हो जाते हैं और वे नानाप्रकारसे क्रीड़ा करने लगते हैं। देवोंके इस उत्साहका वर्णन निम्न प्रकार सम्पन्न किया गया है- कप्पवासम्मि ऊण णाणामरा । चल्लिया चारु घोलंत सव्वामरा ॥ भत्ति- पब्भार-भावेण पुल्लणणा । भूरिकीला दिणोएहिं सोक्खाणणा || णच्चमाणा समाणा समाणा परे । गायमाणा अमाणा -अमाणा परे ॥ वायमाणा विभाणाय माणा परे । वाहणं वाह- माणा सईयं परे ॥ कोवि संकोडिकणं नन्द कोलए । कोवि गच्छे इंसट्ठओ लीलए । देविखकणं हरी कोवि आसंकए । वाहणं घावमाणं थिरो कए ॥ कोवि देवो करफोड़ि दावंतओ । कोदि वोमंगणे भत्ति धावंतओ ।। कोवि केणावि तं षण आवाहियो । कोवि देवोवि देखेदि आवाहिओ ॥९॥१० यह रचना भाषा, भाव और शैली इन तीनों ही दृष्टियोंसे उच्चकोटिको है । वस्तु वर्णन में कविने महाकाव्य रचयिताओंकी शैलीको अपनाया है । कविकी तीसरी रचना 'चंदप्पचरित' है। यह रचना अभी तक किसी भी ग्रंथागारमें उपलब्ध नहीं है । इसमें अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभका जीवनवृत्त अंकित है । 'पासणाहचरिउ' में इस रचनाका उल्लेख है । अतएव इसका रचनाकाल उक्त ग्रंथके रचनाकालसे कम-से-कम दो वर्ष पूर्व अवश्य है। इस प्रकार वि० संवत् १९८७ 'चंदप्पहचरिउ' का रचनाकाल सिद्ध होगा । १४४ : तीथंकर महावीर और उनकी धाचार्य - परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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