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________________ के साथ व्यापारके लिए स्वर्णद्वीप जानेकी तैयारी करने लगा । जब भविष्यवतको स्वर्णद्वीप जानेवाले व्यापारियोंका समाचार मिला, तो वह अपनी माताको आज्ञा लेकर अपने सौतेले भाई बन्धुदतसे मिला और साथ चलनेकी इच्छा व्यक्त की । सरूपाने बन्धुदत्तको सिखलाया कि अवसर हाथ आते ही तुम भविष्यदत्तको मार डालना। ___ शुभ मुहूर्तमें जलपोतों द्वारा प्रस्थान किया गया और वे मदनद्वीप पहुंचे। वहाँसे आवश्यक सामग्री लेकर और भविष्यदत्तको वहीं छोड़कर बन्धुदत्तने अपने जलपोतको आगे बढ़ा दिया। भविष्यदत्त उस जनशून्य बनमें विलाप करता हुआ भ्रमण करने लगा। तृतीय परिच्छेदमें भविष्यदत्त जिनदेवका स्मरण करता हुआ प्रभातकालमें उठता है और चलकर तिलकपुर पहुंचता है। यहाँ भविष्यदत्तका मित्र विद्युत्प्रभ यशोधर मुनिराजसे अपनी पूर्वभवावलि जान फर अपने मित्रसे मिलने के हेतु चल पड़ता है। विद्युत्प्रभके संकेतसे भविष्यदत्तका विवाह वहाँ रहने वाली सुन्दरी भविष्यानुरूपाके साथ हो जाता है। __इधर कमलश्री अपने पुत्रके वियोगमें क्षीण होने लगी। उसने सुक्ता नामक आर्यिकासे श्रुतपंचमीव्रत ग्रहण किया और विधिवत् उसका पालन करने लगी। चतुर्थ परिच्छेदमें भविष्यानुरूपाका मधुर आख्यान आता है । भविष्यानुरूपा और भविष्यदत्त विपुल धन-रत्नोंके साथ समुद्रके तटपर पहुँचते हैं। संयोगसे इसी समय बंधुदत्त अपने जलपोतको लोटाता हुआ उघर आता है। वह उत्सुकतावश अपने जलपोतको तटपर खड़ा करता है। भविष्यदत्त अपने समस्त समान सहित भविष्यानुरूपाको जलपोत पर बैठा देता है। इतनेमें भविष्यानुरूपाको स्मरण आता है कि उसकी नाममुद्रा तिलकपुरकी सेजपर छूट गई है। वह अपने पतिदेवको मुद्रिका लानेके लिए भेज देती है और उधर बंधुदत्त अपने जहाजको खोल देता है। बन्धुदत्त भविष्यानुरूपाको प्रलोभन देता है और अपने अधीन करना चाहता है। भविष्यानुरूपा समुदमें कद कर प्राण देना चाहती है; पर वनदेवी स्वप्नमें आकर उसे धैर्य देती है और कहती है कि तुम्हारा पति एक महीने में तुमसे मिलेगा, तुम चिन्ता मत करो। बन्धुदत्तका जलपोत हस्तिनापुर लौट आता है और वह घोषित कर देता है कि भविष्यानुरूपा उसको वाग्दत्ता पत्नी है और वह शीघ्न ही उसके साथ विवाह करेगा। इधर भविष्यदल तिलकपुरके सुनसान बनमें उदास मन होकर निवास करता आचायतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १४७
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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