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इस ग्रन्थमें जम्बूस्वामीके पूर्वजन्मोंका भी वर्णन आया है। पूर्वजन्मोंमें वह शिवकुमार और भवदेव था और उसका बड़ा भाई सागरचन्द और भवदत्त । भवदेवके जीवनमें स्वाभाविकता है। भवदत्तके कारण ही भवदेवके जीवनमें उतार-चढ़ाव और अन्तर्द्वन्द्व उपस्थित होते हैं । जम्बूस्वामीको पलियोंके पूर्व जन्म-प्रसंग कथा-प्रवाहमें योग नहीं देते। अतः बे अनावश्यक जैसे प्रतीत होते हैं।
___ जम्बूस्वामीके चरित्रको कवि जिस दिशाकी ओर मोड़ना चाहता है उसी ओर वह मुड़ता गया । कविने नायकके जीवन में किसी भी प्रकारकी अस्वा भाविकता चित्रित नहीं की है । राग और वैराग्यके मध्य जम्बूस्वामीका जीवन विकसित होता है।
"जम्बूसामिचरिउ' में शास्त्रीय महाकाव्य के सभी लक्षण घटित होते हैं। सुगठित इतिवृत्तके साथ देश, नगर, ग्राम, शैल, अटवी, उपवन, उद्यान, सरिता, ऋतु, सूर्योदय, चन्द्रोदय आदिका सुन्दर चित्रण आया है । रसभाव-योजनाकी दष्टिसे यह एक प्रेमाख्यानक महाकाव्य है । इस महाकाव्यका आरंभ अश्वघोष कृत 'सौन्दरनन्द' मझा सम्मान वई माईस छोटे भाई प्रयवके अनिच्छापूर्वक दीक्षित कर लिये जानेसे प्रियावियोगजन्य विप्रलम्भ श्रृंगारसे होता है। भवदेव के प्रेमकी प्रकर्षता और महत्ता इसमें है कि वह जनसंघक कठोर अनुशासनमें दिगम्बर मुनिके वेशमें बड़े भाईको देखरेख में रहते हुए भी तथा जैन मुनिके अतिकठोर आचारका पालन करते हुए भी १२ वर्षोंका दीर्घ काल अपनी पत्नी नायवसुके रूप-चिन्तनमें व्यतीत कर देता है । और अपनी प्रियाका निशिदिन ध्यान करता रहता है। १२ वर्ष पश्चात् वह अपने गांव लौटता है और प्रिया द्वारा ही उद्बोधन प्राप्त करता है। इस प्रकार काव्यकी कथावस्तु विप्रलंभ शृंगारसे आरंभ होकर शान्त रसमें समाविष्ट होती है । वीर (४।२१), गेद्र (५।३,५।१३), भयानक (१०।२), वीभत्स (१०२६), करुण (२१५, ११।१७), अद्भुत (२३, ५।२) एवं वात्सल्य (७१३, ६१७) में रसका परिणाम आया है।
अलंकारोंमें उपारा ११६, मालोपमा ५१८, मालोत्प्रेक्षा ८१०, फलोत्प्रेक्षा ४११४, रूपकमाला २७, मिदर्शना १३, दष्टान्त १२, वक्रोक्तिः ४१८, विभावना ४१८, विरोधाभास ९।१२, व्यतिरेक ४|१७, सन्देह ४|१९, भ्रान्तिमान् ५२, और अतिशयोक्ति १।१७ अलंकार पाये जाते हैं।
१३० : गेवर महावीर और उनकी आचार्य-परम्पग