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________________ पुनः स्वर्ग में जन्म ग्रहण किया और भवदत्तके जीव सागरचन्द्रने आयुष्य पूर्ण कर स्वर्ग में जन्म प्राप्त किया । चौथो सन्धिसे जम्बूस्वामीको कथा आरंभ होती है। इनके पिताका नाम अहंदास था । सन्धिमें जन्म, वसन्तोत्सव, जलक्रीड़ा आदिका वर्णन आया है। अनन्तर उनके द्वारा मत्त गजको परास्त करनेका कथन आया है । पाँचवीसे सातवीं सन्धितक जम्बूस्वामीके अनेक दीरतापूर्ण कार्योंका वर्णन किया है। महर्षि सुधर्मास्वामी अपने पांच शिष्योंके साथ उपवनमें आते हैं। जम्बूस्वामी उनके दर्शन कर नमस्कार करते हैं। वे अपने पूर्वभवोंका वृत्तान्त जान कर विरक्त हो घर छोड़ना चाहते हैं। माता समझाती है। सागरदत्त श्रेष्ठिका भेजा हुआ मनुष्य आकर जम्बूका विवाह निश्चित करता है । श्रेष्ठियोंकी कमलश्री, कनकश्री, विनयश्री और रूपश्री नामक चार कन्याओंसे जम्बूका विवाह होता है । " जम्बूके हृदय में पुनः वैराग्य जाग्रत होता है । उनकी पत्नियाँ वैराग्यविरोधी - कथाएं कहती हैं। जम्बू महिलाओंकी निन्दा करता हुआ वैराग्य निरूपक कथानक कहता है । इस प्रकार अर्द्धरात्रि व्यतीत हो जाती है । इतने में ही विद्युन्चर चोर चोरी करता हुआ वहाँ आता है । जम्बूस्वामी की माता भी जागती थीं । उसने कहा - 'चोर, जो चाहता है, ले ले' । चोरको जम्बूको मातासे जम्बूके वैराग्य भावकी सूचना मिलती है। विद्युच्चरने प्रतिज्ञा की कि वह या तो जम्बूको रागी बना देगा, अन्यथा स्वयं वह वैरागी बन जायगा । जम्बूको माता उस चोरको उस समय अपना छोटा भाई कहकर जम्बूके पास ले जाती जाती है, ताकि विद्युच्चर अपने कार्य में सफल हो । दशवीं सन्धिमें जम्बू और विद्युच्चर एक दूसरेको प्रभावित करनेके लिए अनेक आख्यान सुनाते हैं। जम्बू वैराग्यप्रधान एवं विषय-भोगकी निस्सारताप्रतिपादक आख्यान कहते हैं और विद्युच्चर इसके विपरीत वैराग्यको निस्सारता दिखलानेवाले त्रिषयभोग-प्रतिपादक आख्यान । जम्बूस्वामोकी अन्तमें विजय होती है। वे सुधर्मास्वामीसे दीक्षा लेते हैं और उनका सभी पत्नियाँ भी आर्यिका हो जाती हैं। जम्बूस्वामी केवलज्ञान प्राप्तकर अन्तमें निर्वाणपद लाभ करते हैं । विद्युच्चर भी दशविध धर्मका पालन करता हुआ तपस्या द्वारा सर्वार्थसिद्धि लाभ करता है । जम्बूचरिउके पढ़नेसे मंगल-लाभका संकेत करते हुए कृति समाप्त होती है । आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : १२९
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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