________________
है। कविने विभिन्न उपमानोंका प्रयोग करते हुए इस नगरीको सुराधिपको नगरीसे भी श्रेष्ठ बताया है | वायुवेगारानीके चित्रणमें कविने परम्परागत उपमानोंका उपयोगकर उसके नखशिखका सौन्दर्य अभिव्यक्त किया है।
११ वी सन्धिके प्रथम कडवकमें मेवाड़ देशका रमणीय चित्रण किया है । यहाँके उद्यान, सरोवर, भवन आदि सभी दृष्टियोंसे सुन्दर एवं मनमोहक हैं।
इस ग्रंथमें पद्धड़िया छन्दकी बहुलता है। इसके अतिरिक्त मदनावतार १११४, रिसानी ११, सपिणी ।७, कुलप. ९९, भुजंगप्रयात रा६, प्रमाणिका ३।२, रणक या रजक ३।११, मत्ता ३२१, विद्युन्माला २।९, दोधक १०३ आदि छन्दोंका प्रयोग किया है । छन्दोंमें वर्णवृत्त और मात्रिक वृत्त दोनों मिलते हैं। संक्षेपमें कविने सरल और सरस भाषामें भावोंकी अभिव्यञ्जना की है |
वीर कवि महाकवि वीरने 'जंबुसामिचरिउ में अपना परिचय दिया है । उनका जन्म मालवा देशके गुस्वस्खेउ नामक ग्राममें हुआ था। उनके पिता 'लाडनागउ' गोत्रके महाकवि देवदत्त थे । देवदत्तने १. वरांगचरित २. शान्तिनाथराय ३. सद्धयवीरकथा और ४. अम्बादेवीरासकी रचना की थी । महाकवि वीरने अपने पिताको स्वयं तथा पुष्पदन्तके पश्चात् तीसरा स्थान दिया है। कविने लिखा है कि स्वयंभूके होने से अपभ्रंशका प्रथम कवि, पुष्पदन्तके होनेसे अपन'शका द्वितीय कवि और देवदप्तके होनेसे अपन शके तृतीय कविकी ख्याति हुई है। वीर कविने अपने समय तक सोन ही कवि अपभ्रशके माने हैं। स्वयंभू, पुष्पदन्त और देवदत्त । इससे यह ध्वनिस होता है कि कवि वीरके पिता देवदत्त भी अपभ्रंशके स्थातिनामा कवि थे। ___ कविकी मांका नाम श्री सनुबा था और इनके सीहल्ल, लक्षणांक तथा जसई ये तीन भाई थे। कविकी चार पलियां यी-१. जिनमति २. पावती ३. लीलावती ४. जयादेवी । इनकी प्रथम पलिसे नेमिचन्द्र नामक पुत्र उत्पन्न हमा था । बीर संस्कृत काव्य रचनामें भी निपुण थे; किन्तु पिताके मित्रोंकी प्रेरणा और आग्रहसे संस्कृत काव्यरचनाको छोड़कर अपभ्रंशप्रबन्धशेलोमें जंबुसामिचरिउ की रचना की है।
कविका लाडवागत वंश इतिहास प्रसिद्ध बहुत पुराना है। इस वंशका प्रारंभ, पुन्नाट संघसे हुआ है। इस संघके आचार्य पुन्नाट-कर्नाटक प्रदेशमें विहार१. जंबुसामिचरित मारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन सन् १९६८; १४.५ । १२४ : तीर्थकर महावीर घोर उनकी प्राचार्य-परम्परा