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आस्था और श्रद्धा उत्पन्न करनेका प्रयत्न किया । ग्रंथको विषय-वस्तु निम्न प्रकार है___ मंगलाचरणके पश्चात् प्राचीन कवियोंका उल्लेख करते हुए आत्म-विनय प्रदर्शित की है। तदनन्तर जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, मध्य प्रदेश वैताठ्य पर्वत ओर वैजयन्ती नगरीका चित्रण किया है । वैजयन्ती नगरीके राजाको रानीका नाम वायुवेगा था। उनके मनवेग नामक एक अत्यन्त धार्मिक पुत्र हुआ। उसका मित्र पवनवेग भी धर्मात्मा और ब्राह्मणानुमोदित पौराणिक धममें आस्था रखने वाला था । पवनवेगके साथ मनवेग विद्वानोंकी सभामें कुसुमपुर गया।
तीसरी सन्धिमें अंगदेशके राजा शेखरका कयानक देकर कवि अनेक पौराणिक उपाख्यानोंका वर्णन करता है। चौथो सन्धिमें अवतारवाद पर व्यंग्य किया है। विष्णु दश जन्म लेते हैं और फिर भी कहा जाता है कि वे अजन्मा है; यह कैसे संभव है ? स्थान-स्थानपर कविने 'तथा चोक्तं तैरेव' इत्यादि शब्दों द्वारा संस्कृतके अनेक पद्म भी उद्धृत किये हैं। इसी प्रसंगमें शिवके जाह्नवी और पार्वती प्रेम एवं गोपी-कृष्ण लीलापर भी व्यंग्य किया है ।
पांचवीं संधि में ब्राह्मण-धर्म की अनेक अविश्वसनीय और असत्य बातों की ओर निर्देश कर मनोवेग ब्राह्मणों को निरुत्तर करता है। इसी प्रसंगमें वह सीताहरण आदिके सम्बन्धमें भी प्रश्न करता है।
सातवीं सन्धिमें गान्धारीके १०० पुत्रोंकी उत्पत्ति और पाराशरका धोवरकन्यासे विवाह वर्णित है। आठवीं' सन्धिमें कुन्तोसे कर्णको उत्पत्ति और रामायणको कथापर व्यंग्य किया है।
नवीं संधिमें ममवेग अपने मित्र पवनदेगके सामने ब्राह्मणोंसे कहता है कि एकबार मेरे सिरने धड़से अलग होकर वृक्षपर चढ़कर फल खाये। अपनी बातकी पुष्टिके लिए वह रावण और जरासन्धका उदाहरण देता है। इसी प्रसंगमें मनवेग श्राद्ध पर भी व्यंग्य करता है।
दशवों सन्धिमें गोमेध, अश्वमेधादि यज्ञों और नियोगादिपर व्यंग किया है । इस प्रकार मनवेग अनेक पौराणिक कथाओंका निर्देशकर और उन्हें मिथ्या प्रतिपादित कर राज्यसभाको परास्त करता है । पवनवेग भी मनवेगको युक्तियों से प्रभावित होता है और वह जैनधर्म में दीक्षित हो जाता है। जैनधर्मानुकूल उपदेशों और आचरणोंक निर्देशके साथ ग्रंथ समाप्त होता है। ___ कविने इस ग्रन्यमें कवित्वशक्तिकाभी पूरा परिचय दिया है। प्रथम संधिके चतुर्थ कड़वको वैजयन्ती नगरीको सुन्दर नारीके समान मनोहारिणी बताया
प्राचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १२३