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तो वि जिणिद धम्म अणुरायइ, वुह सिरि सिद्धसेण सुपसाई। .
करमि सयं जिह लिणि दलथिउ जलु, अणहरेइ णिशुलु मुत्राहलु । धत्ता-जा जयरामें आसि विरइय पह पबंधि ।
सा हम्मि धम्मपरिक्ख सा पद्धडिय बधि । हरिषेणके व्यक्तित्वमै नम्रता, गुणग्राहकता, धमक प्रति श्रद्धा एवं आत्मसम्मानको भावना समाविष्ट है । उनके काव्य-वर्णनसे ऐसा ध्वनित होता है कि वे पुराणशास्त्रके ज्ञाता थे और उनका अध्ययन सभी प्रकारके शास्त्रोंका था। स्थितिकाल
कवि हरिषेणने 'धम्मपरिक्खा' के अन्तमें इस ग्रन्थका रचनाकाल अंकित किया है । लिखा है--
विक्कम-णिव-परिवत्तिय कालए, ववगए वरिस-सहसेहि चउतालए। इय उप्पणु भविय-जण-सुहयरु, उभ-रहिय-अम्मासव-सरयरु । ११२२७
अर्थात् वि० सं० १०४४ में इस ग्रन्थको रचना हुई है । अतः कविका समय वि० सं० की ११वीं शती है।। __ कविने अपनेसे पूर्व जयरामको गाथा-छन्दोंमें विरचित प्राकृत-भाषाको धर्म-परीक्षाका अवलोकन कर इसके आधार पर ही अपनी यह कृति अपभ्रंशमें लिखी है। रचना __ कवि हरिषेणको एक ही रचना धर्म-परीक्षा नामकी उपलब्ध है। डा० १० एन उपाध्ये ने दश-धर्म परीक्षाओंका निर्देश किया है । अमिततकी धर्मपरीक्षा वि० सं० १०७०में लिखी गई है। अर्थात् हरिषेणकी धर्म-परीक्षा अमितगतिसे २६ वर्ष पूर्व लिखी गई है। दोनों में पर्याप्त समानता है। अनेक कथाएँ पद्य एवं वाक्य दोनोंमें समान रूपसे मिलते हैं। पर जब तक हरिषेण द्वारा निर्दिष्ट जयरामकी धर्म-परीक्षा प्राप्त न हो तब तक इस परिणाम पर नहीं पहुंच सकते कि किसने किसको प्रभाषित किया है ? संभवत: दोनोंका स्रोत जयरामको धर्म-परीक्षा हो हो।'
धर्म-परीक्षाम कविने ब्राह्मण-धर्म पर व्यंग्य किया है। उसके अनेक पौराणिक आख्यानों और घटनाओंको असंगत बत्तलाते हुए जैनधर्मके प्रति
१. डॉ. ए. एन. उपाध्ये, हरिषेणकी धम्मपरिवखा ऐनल्स ऑफ भण्डारकर मोरि
यण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट भाग २३ पृ. ५९२-६०८ ।
१२२ : तोयंकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा