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हरिवंश कोछड़ने विक्रम संवत् | हमारा अनुमान है कि ये दोनों ही संवत् शक संवत् हैं और धवल कविका समय शक संवत्को १०वीं शतीका अन्तिम पाद या ११वीं शतीका प्रथम
है !
रचना
कविका एक ही ग्रंथ हरिवंशपुराण उपलब्ध है । इस में रखें तीर्थंकर यदुवंशी नेमिनाथका जीवनवृत्त अंकित है। साथ ही महाभारतके पात्र कौरव और पाण्डव तथा श्रीकृष्ण आदि महापुरुषोंके जीवनवृत्त भी गुम्फित हैं । इस ग्रन्थ में १२२ सन्धियाँ हैं । ग्रंथ की रचना पन्झटिका और अल्लिलड् छन्द में हुई है । पढडिया, सोरठा, पत्ता, विलासिनी, सोमराजि प्रभृति अनेक छन्दोंका प्रयोग इस ग्रंथ में किया गया है। श्रृंगार, वोर, करुण और शान्त रसोंका परिपाक भी सुन्दररूप में हुआ है। कविने, नगर, वन पर्वत आदिका महत्त्वपूर्ण चित्रण किया है। यहाँ उदाहरणार्थ मधुमासका वर्णन प्रस्तुत किया जाता है
फग्गुणु गऊ महुमासु परायउ, मयणछलिउ लोउ अणुरायउ 1 वण सय कुसुमिय चारुमणोहर बहु मयरंदे मत्त बहु महुयर । गुमुगुमंत स्वणमण सुहावहि अइपपाठ पेम्मुकोहि । केसु व वर्णा वणारुण फुल्लिय, णं विरहग्गे जाल णमिल्लिया । घरिघरि पारिउ यि तणु मंडहि, हिंदोलह हिउहि उग्गार्याह । चणि परपठ महूर उल्लाह, सिहिउलु सिहि सिहरेहि घहावइ । - द्रिवंशपुराण १७-३
अर्थात् फाल्गुनमास समाप्त हुआ और मधुमास (चैत्र) आया । मदन उद्दीप्त होने लगा । लोक अनुरक्त हो गया । वन नाना पुष्पोंसे युक्त, सुन्दर और मनोहर हो गया । मकरन्द- पानसे मत मधुकर गुनगुनाते हुए सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं......घरोंमें नारियाँ अपने शरीरको अलंकृत करती हैं, झूला झूल रहीं हैं, विहार करती हैं, वनमें गाती कोयल मधुर आलाप करती हैं। सुन्दर मयूर नृत्य कर रहे हैं ।
इस काव्यमें करुण रसको अभिव्यंजना भो बहुत सुन्दर मिलती है । कंसवधपर परिजनोंके करुण विलापका दृश्य दर्शनीय है
हा रह्य दह्य पाविट्ठ खला, पह अम्ह् मणोहर किय विहला ।
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हा विहि जिहीण पहं काइकिउ गिहि दरिसिवि तक्खणि चक्खु हिउ | देव या वुल्लाह काई तुहुं, हा सुन्दरि दरसहि विष्णु मुहु ।
हा
आचार्यस्य काव्यकार एवं लेखक ११९