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अर्थात् कविचक्रवर्ती वीरसेन सम्यक्त्वयुक्तप्रमाणविशेष ग्रन्थके कर्ता, देवनन्दि, वज्रसूरि प्रमाणग्रन्थके कर्ता, महासेनका सुलोचनाग्रन्थ, रविषेणका पद्मचरित, जिनसेनका हरिवंशपुराण, जटिल मुनिका वरांगचरित, दिनकरसेनका अनंगचरित, पद्मसेनका पाश्वनाथचरित, अंभसेनकी अमृताराधना, धनदत्तका चन्द्रप्रभ रत, अनेक चरितग्रन्थोंके रचयिता विष्णुसेन, सिंहनन्दीकी अनुप्रेक्षा, नरदेवका णवकारमन्त्र, सिलेका भकारिनोर, सर त के भने बाचानक, जिनरक्षित धवलादि ग्रन्थप्रख्यापक, असगका दीरचरित, गोविन्द कवि (श्वेत.) का सनत्कुमारचरित, शालिभद्रका जीव-उद्योत, चतुर्मुख, द्रोण, सेढ़ महाकविका पउपचरिउ आदि विद्वानों और उनकी कृतियोंका निर्देश किया है ।
इनमें पद्मसेन और असग कवि दोनों ही ग्रन्थकर्ताओंके समयपर प्रकाश डालते हैं। स्थिसिकाल
असग कविका समय शक संवत् ११० (ई० सन् ९८८) एवं पनसेनका शक सं० ९९९ समय है, जिससे स्पष्ट है कि धवल कवि शक सं० २९९. के पश्चात् कभी भी हुआ है। पद्मकोत्तिकी एकमात्र रचना पार्श्वपुराण उपलब्ध है । इन दोनों रचनाओंका उल्लेख होनेसे धवलकविका समय शक सं० को ११ वीं शताब्दीका मध्यकाल आता है। वर्द्धमानचरितकी प्रशस्तिमें बताया गया है कि श्रीनाथके राज्यकालमें चोल राज्यको विभिन्न नारयोंमें कविने आठ ग्रन्थोंकी रचना की हैविद्यामया अपठितेत्यसमाकृयेन श्रीनाथराज्यमखिलं जनतोपकारि । प्राप्यैव चोडविषये विरलानगर्यां ग्रथाष्टकं च समकारि जिनोपदिष्टम् ॥
-महावीरचरित, प्रशस्तिश्लोक १०५ 'पासणाहरिउ'म पद्मसेन या पप्रकोतिने रचनाकालका निर्देश निम्नप्रकार किया है.--
णव-सय-णउआण उये कत्तियमासं अमावसो दिवसे ।
रइयं पासपुराणं कइणा इह पउमणामेण ॥' अर्थात् सं० ९९९में कात्तिक मासको अमावस्याको इस ग्रन्थकी समाप्ति हुई । यहाँ सवत्से शक या विक्रम कौन-मा संवत् ग्रहण करना चाहिए, इसपर विद्वानों में मतभेद है। प्रो० प्रफुल्लकुमार मोदीने इसे शक-संवत् माना है और
१. पासणाहचरिउ. प्राकृत-अन्ध-परिषद, प्रयाक ८, कवि-प्रशस्ति, पद्य ४ ।
११८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा