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________________ देता है । अपनी पुत्री सुमित्रा के साथ उसका विवाह भी कर देता है । भविष्यदत्त सुखपूर्वक जीवन-यापन करने लगता है । भविष्यदत्तकी प्रथम पत्नीके हृदय में अपनी जन्मभूमि या मैनाक द्वीपको देखने की इच्छा जाग्रत होती है । भविष्यदत्त, उसके माता, पिता और सुमित्रा सब उस द्वीपमें जाते हैं। वहाँ उन्हें एक जैन मुनि मिलते हैं, जो उन्हें सदाचार के नियमों का उपदेश देते हैं। कालान्तर में ये सब लौट आते हैं । एक दिन विभलबुद्धि नामक मुनि आते हैं। भविष्यदत्त उनके मुख से अपने पूर्व जन्मों की कथा सुनकर विरक्त हो जाता है और अपने पुत्रको राजभार सौंपकर श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर लेता है। भविष्यदत्त सपश्चरण करता हुआ कर्मोंको नष्टकर निर्वाण प्राप्त करता है। श्रुतपंचमी के महात्म्यके स्मरणके साथ कथा समाप्त हो जाती है । घटना बाहुल्य इस कथाकाव्य में पाया जाता है । पर घटनाओंका वैचित्र्य बहुत कम है। कविने लौकिक आख्यानके द्वारा श्रुतपंचमीव्रतका माहात्म्य प्रदर्शित किया है । अन्तमें भी इसी व्रतके माहात्म्यका स्मरण किया गया है। धार्मिक विश्वासके साथ लौकिक घटनाओंका सम्बन्ध काव्यचमत्कारार्थं किया गया है । इस कृति में प्रबन्धकी संघटना सुन्दर रूप में हुई है । कथाके विकासके साथ ही कार्य-कारणघटनाओं की कार्य-कारण खला प्रतिपादित है । वस्तुतः यह एक रोमांचक काव्य है। इसमें लोक-जीवन के अनेक रूप दिखलाई पड़ते हैं । करुण, शृंगार, वीर, रौद्र आदि रसोंका परिक्षक भी सुन्दर रूपमें हुआ है । अलंकारों में उपमा, परिणाम, सन्देह, रूपक भ्रान्तिमान, उल्लेख, स्मरण, अपलव उत्प्रेक्षा, तुल्ययोगिता, दीपक, दृष्टान्त, प्रतिवस्तूपमा, व्यतिरेक, निदर्शना और सहोषित आदि अलंकार प्रयुक्त हुए हैं। छन्दोंमें पद्धड़ी, अडिल्ला, घत्ता, दुवई, चामर, भुजंगप्रयात, शंखनारी, मरइट्ठा, प्लवंगम, कलहंस आदि छन्द प्रधान हैं । वास्तव में धनपाल कविकी यह कृति कथानक रूढ़ियों और काव्य- रूढ़ियोंकी भी दृष्टिसे समृद्ध है । I धवल कवि अपभ्रंश - साहित्य के प्रबन्धकाव्य रचयिताओं में कवि धवलका नाम भी आदर के साथ लिया जाता है । कवि घवलके पिताका नाम सूर और माताका नाम केसुल्ल था । इनके गुरुका नाम अम्बसेन था । धवल ब्राह्मणकुलमें उत्पन्न ११६ : वीर्थंकर महावीर और उनको बाचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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