SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साथ हो लेता है । समुद्र में यात्रा करते हुए दुर्भाग्यसे उसको नौका आँधीसे पथभ्रष्ट हो मदनाग या मैनाक द्वीप पर जा लगती है । बन्धुदत्त घोखेसे भविध्यदत्तको वहीं एक जंगलमें छोड़कर स्वयं अपने साथियों के साथ आगे निकल जाता है । भविष्यदत्त अकेला इधर-उधर भटकता हुआ एक उजड़े हुए, किन्तु समृद्ध नगरमें पहुंचता है । वहीं एक जैनमन्दिरमें जाकर वह चन्द्रप्रभ जिनकी मा करता है । उसी बड़े नारों का एक रिन्य सुन्दरीको देखता है । उसोसे भविष्यदत्तको पता चलता है कि वह नगर कभी अत्यन्त समृद्ध था। एक असुरने इसे नष्ट कर दिया है । कालान्तरमें वही असुर वहां प्रकट होता है और भविष्यदत्तका उसी सुन्दरीसे विवाह करा देता है । चिरकाल तक पुत्रके न लौटनेसे कमलश्री उसके कल्याणार्थ श्रतपंचमी यतका अनुष्ठान करती है। उधर भविष्यदत्त सपत्नीक प्रभूत सम्पत्तिके साथ घर लोटता है । लौटते हुए उसकी बन्धुदत्तसे भेंट होती है, जो अपने साथियोंके साथ यात्रामें असफल होनेसे विपन्नावस्थाको प्राप्त था । भविष्यदत्त उसका सहर्ष स्वागत करता है। यहाँसे प्रस्थानके समय पूजाके लिये गये हुए भविष्यदत्तको फिर धोखेसे वहीं छोड़कर बन्धुदत्त उसकी पत्नी और प्रचुर धनसम्पत्तिको लेकर साथियोंके साथ नौकामें सवार हो वहाँसे चल पड़ता है । मार्गमें फिर आँधीसे उसकी नौका पथभ्रष्ट हो जाती है और वे सब जैसे-तैसे हस्तिनापुर पहुंचते हैं। घर पहुंचकर बन्धुदत्त भविष्यदत्तको पत्नीको अपनी भावी पत्नी घोषित कर देता है । उनका विवाह निश्चित हो जाता है । कालान्तरमें दुःखी भविष्यदत्त भी एक यक्षकी सहायतासे हस्तिनापुर पहुंचता है । वहाँ पहुँचकर वह सब वृत्तान्त अपनी मातासे कहता है । इधर बन्धुदत्तके विवाहको तैयारियाँ होने लगती हैं और जब विवाह-सम्पन्न होने वाला होता है तो राजसभामें जाकर बन्धुदत्तके विरुद्ध भविष्यदत्त शिकायत करता है और राजाको विश्वास दिला देता है कि वह सच्चा है । फलतः बन्धुदत्त दण्डित होता है और भविष्यदत्त अपने माता-पिता और पत्नीके साथ राजसम्मानपूर्वक सुखसे जीवन व्यतीत करता है । राजा भविष्यदत्तको राज्यका उत्तराधिकारी बना अपनी पुत्री सुमित्रासे उसके विवाहका वचन देता हैं ! ___ इसी बोच पोदनपुरका राजा हस्तिनापुरके राजाके पास दूत भेजता है और कहलवाता है कि अपनी पुत्री और भविष्यदत्तकी पत्नीको दे दो या युद्ध करो। राजा पोदनपुरमरेशकी शतंको अस्वीकार करता है और परिणामतः युद्ध होता है । भविष्यदत्तकी सहायता और वीरतासे राजा विजयी होता है । भविष्यदत्तकी वीरतासे प्रभावित हो राजा भविष्यदत्तको युवराज घोषित कर आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ११५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy