SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्पुणु पुणु तवचरण चरेप्पिणु अणसणि पंडियमरणि मरेपिण। दिवि सोलहमहं पुण्णायामि हड सुखनिज्जुप्पहु गायि ।। -भविसयत्तरित २०,९। अतएव कवि धनपाल दिगम्बर सम्प्रदायका अनुयायो है, कविने अपने जीवनके सम्बन्धमें कुछ भी निर्देश नहीं किया है। केवल वंश और माता-पिताका नाम ही उपलब्ध होता है । यह निश्चित है कि कवि सरस्वतीका वरद पुत्र है। उसे कवित्व करनेको अपूर्व शक्ति प्राप्त है । स्पितिकाल कवि धनपालका स्थितिकाल विद्वानोंने वि. की दशवीं शती माना है। 'भविसयतकहा की भाषा हरिभद्र सूरिके 'नेमिनाहचरिउसे मिलती-जुलती है । अत: धनपालका समय हरिभद्रके पश्चात् होना चाहिए। श्री पी० वी० गणेने निम्नलिखित कारणोंके आधार पर इनका समय दशवीं शती माना है १. भाषाके रूप और व्याकरणकी दृष्टिसे इसमें शिथिलता और अनेकरूपता है । अतएव यह कथाकृति उस समयको रचना है, जब अपभ्रंश भाषा बोलचालकी थी। २. हेमचन्द्र के समय तक अपभ्रंश-भाषा रूढ़ हो चुकी थी। उन्होंने अपने व्याकरणमें अपभ्रशके जिन दोहोंका संकलन किया है, उनकी भाषाको अपेक्षा 'भविसयत्तकहा'की भाषा प्राचीन है | अत: धनपालका समय हेमचन्द्रके पूर्व होना चाहिए। ३. भविसयत्तकहा और पउभचरिउके शब्दोंमें समानता दिखाते हुए प्रो० भायाणीने निर्देश किया है कि भविसयत्तकहाके आदिम कड़वकोंक निर्माणके समय धनपालके ध्यान में 'पउमचरिउ' था । इसलिए धनपालका समय स्वयं भूके बाद और हेमचन्द्रसे पूर्व ही किसी कालमें अनुमित किया जा सकता है।' ४. दलाल और गुणेने भविसयत्तकहाकी भाषाके आधारपर धनपालको हेमचन्द्रका पूर्ववर्ती माना है । अतः धनपालका समय दशवीं शतीके लगभग होना चाहिए । भविसपत्तकहाकी सं० १३९३ की लिपि प्रशस्तिके आधारपर श्री डा० १. दि पउमचरित एण्व दि भविसयत्तकहा-धो भायाणी, भारतीय विद्या (अंग्रेजी) भाग ८, अंक १-२: सन १९४७, पृ० ४८-५० । आचार्यतुल्प काराकार एवं लेखक : ११३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy