________________
है। इसको दूसरी, तीसरी और चौथी सन्धिके प्रारंभ में नन्नके गुणकीर्त्तन करने वाले तीन संस्कृत-पद्य है । जसहरचरिउको प्राचीन प्रतियोंमें गन्धर्वं कविके बनाये हुए कतिपय क्षेपक भी उपलब्ध हैं।
कवि पुष्पदन्त अपभ्रंशके श्रेष्ठ कवियों में परिगणित है । कोमलपद, गूढ़ कल्पना, प्रसन्न भाषा, छन्द - अलंकारयुक्तता, अर्थगंभीरता आदि सभी काव्यतत्त्व इनके ग्रन्थोंमें प्राप्त हैं । हमारे विचार में पुष्पदन्त नैषधकार श्रीहर्ष के समान ही मेधावी कवि हैं । उन जैसा राजनीतिका आलोचक बाणके अतिरिक्त दूसरा लेखक नहीं हुआ । मेलापाटीके उस उद्यान में हुई भरत और पुष्पदन्तकी भेंट भारतीय साहित्यकी बहुत बड़ी घटना है । यह अनुभूति और कल्पनाकी वह अक्षयघारा है, जिससे अपभ्रंश साहित्यका उपवन हरा-भरा हो उठा।
धनपाल
धनपालकी प्रतिभा आख्यान साहित्यके सृजन में अनुपम है। घनपालके पिताका नाम 'माएसर - मायेश्वर और माताका नाम घनश्री था । इनका जन्म धक्कड़ बंशमें हुआ था । यह धक्कड़ वंश पश्चिमी भारतको वैश्य जाति है । देलवाड़ा में तेजपालका वि० सं० १९८७ का एक अभिलेख है, जिसके घरकट या धक्कड़ जातिका उल्लेख है । आबूके शिलालेखोंमें भी इसका निर्देश मिलता है। प्रारंभ में यह जाति राजस्थानकी मूल जाति थी; बादमें यह देशके अन्य भागों में व्याप्त हुई |
धनपाल दिगम्बर सम्प्रदायका अनुयायी था । 'भविसयत्तकहा' के 'जैनभंजिवि दियम्बरि लायउ के अतिरिक्त ग्रंथके भीतर आया हुआ सैद्धान्तिक विवेचन उनका दिगम्बर मतानुयायी होना सिद्ध करता है । घनपालने अष्टमूल गुणोंका वर्णन करते हुए बताया है कि मधु, मद्य, मांस और पांच उदम्बर फलोंको किसी भी जन्ममें नहीं खाना चाहिए। भावसंग्रहके कर्त्ता देवसेन के अनुसार है । सोमदेव और मान्यता है।
कचिका यह कथन आशावर की भी यही
कवि धनपालने १६ स्वर्गीका कथन भी दिगम्बर आम्नायके अनुसार ही किया है । कविने लिखा है
१. महु मज्जु मंसु पंचुचराई खज्नंति ण जम्मंतर समाई । १६८ । २. महुमज्जुमंसविरई चाओ पुण जंवराण पंचहूं ।
अद्वेदे मूलगुणा वंति फुड देशविरयमि--- भावसंग्रह, गाथा ३५६ ॥
११२ : वोर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा