SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकार या महापुराण-यह एक विशालकाय ग्रन्थ है और दो वण्डोंमें विभक्त है ---आदिपुराण एवं उत्तरपुराण । इन दोनों खण्डोंमें ६३ शलाकापुरुषोंके चरित गम्फित हैं। प्रथम खण्डमें आदि तीर्थकर ऋषभनाथ और भरतके परित्त निबद्ध किये गये हैं और दूसरे खण्डमें अजित, संभव आदि शेष २३ तीर्थकरोंकी एवं उनके समकालीन नारायण, प्रतिनारायण एवं बलभद्र आदिकी जीवन-गाथाएं निबद्ध हैं। उत्तरपुराणमें पद्मपुराण (रामायण) तथा हरिवंशपुराण (महाभारत) भी सम्मिलित हैं। मादिपुराणमें ८० आर उत्तरपुराण ४२ दिया है। दोनों का बोलप्रमाण २०,००० है । इसकी रचनामें कविको लगभग छः वर्ष लगे थे। ___ इस महान् रचनाके सम्बन्धमें कविने स्वयं स्वीकार किया है कि इसमें सब कुछ है, जो इसमें नहीं है वह कहीं भी नहीं है । महापुराणकी रचना महामात्य भरतकी प्रेरणा और प्रार्थनासे सम्पन्न हुई है। इसीलिए कविने इसकी प्रत्येक सन्धिके अन्तमें 'महाभन्दभरताणुमण्णिए'-'महाभव्यभरताणुमानिते' विशेषण दिया है एवं इसकी अधिकांश सन्धियोंके प्रारम्भमें भरतका विविधमुख गुणसंकीर्तन किया गया है। गायकुमारचरित---यह एक सुन्दर महाकाव्य है। इसमें ९ सन्धिर्या हैं। और यह नन्ननामाङ्कित है। इसमें पञ्चमीके उपवासका फल प्राप्त करनेवाले नागकुमारका चरित वर्णित है। यह रचना बहुत ही प्रौढ़ एवं मनोहारिणी है। मान्यखेटमें नन्नके मन्दिरमें रहते हुए पुष्पदन्तने 'णायकुमारचरिउ'को रचना की । प्रारंभमें कहा गया है कि महोदधिके गणवर्म एवं शोभन नामक दो शिष्योंने प्रार्थना की कि आप पञ्चमीके फल प्रतिपादन करनेवाले काव्यकी रचना कीजिये । महामात्य नन्नने भी उसे सुननेकी इच्छा प्रकट की तथा नाइल्ल और शीलभट्टने भी आग्रह किया। कविने इस ग्रंथके प्रारंभमें काव्यके तत्त्वोंका भी उल्लेख किया है । कवि कहता है---- "दुविहालंकारें विफ्फुरति लीलाकोमलई पयाइ दिति । महफव्वणिहेलणि संचरति बहुहावभावविभम परति ! सुपत्थे अत्थे रिहि करति सम्वई विण्णाणई संभरति । गोसेसदेसभासउ चवंति लक्खणई विसिष्टुई दक्खति । अबरुदछंदमग्गेण जति पाणेहि मि दइ पाणाइँ होति । णवहिं मि रसेहिं संचिजमाण विग्गइतएण णिरु सोहगाण । चउदहपुग्विल्ल दुवालसंगि जिनवयणयिणिग्गयसत्तभंगि । वायरणवित्तिपायडियणाम पसियज महु देविमणोहिराय।" ११. : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy