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मात्यवंश के प्रतापशाली और प्रभावशाली मंत्री थे । कविने तुडिंग राजाका उल्लेख किया है । यह कृष्णका घरेलू नाम है। इसके अतिरिक्त उसने वल्लभराय, बल्लभनरेन्द्र, शुभतुंगदेवका भी निर्देश किया है । वल्लभराय राष्ट्रकूटनरेशोंकी उपाधि थी, जो उन्होंने चालक्यनरेशोंको जीतने के उपलक्ष्य में ग्रहण की थी ।
तुडिंग या कृष्ण तृतीय, जगतुंग पिता के बाद राज्यसिंहासन राज्यकालमें ही स्वर्गवासी हो । कुष्ण तृतीय राष्ट्रकूट
अमोघवर्ष तृतीय या बद्दिगके तीन पुत्र थे, और खोट्टिगदेव । कृष्ण सबसे बड़े थे, जो अपने पर आसीन हुए । जगत्तुंग छोटे थे और उनके गये थे । अतएव तृतीयो वंशके सबसे प्रतापी और सार्वभौम राजा थे । इनके पूर्वजों का साम्राज्य नर्मदासे लेकर दक्षिण में मैसूर तक व्याप्त था। मालवा और बुन्देलखण्ड भी इनके प्रभावक्षेत्र में थे । इस विस्तृत साम्राज्यको कृष्ण तृतीयने और भी वृद्धिंगत किया था | ताम्रपत्रों के अनुसार उसने पाण्ड्य और केरलको हराया, सिंहलसे कर वसूल किया और रामेश्वरम् में अपनी कीर्तिवल्लरीको विस्तृत किया । ये ताम्रपत्र शक सं० ८८१ के हैं ।
देवली के अभिलेखसे' अवगत होता है कि उसने कांचीके राजा दतिगको और बप्पुकको मारा, पल्लवनरेश अंतिगको हराया, गुर्जरोंके आक्रमणसे मध्यभारतके कलचुरियोंकी रक्षा की ओर अन्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त की । हिमालयसे लेकर लंका और पूर्व से लेकर पश्चिम समुद्र तक राजा उसको आज्ञा मानते थे । उसका साम्राज्य गंगाकी सीमा को भी पार कर गया था। संक्षेपमें इतना ही कहा जा सकता है कि भरत और रन अमात्य पुष्पदन्तके आश्रयदाता थे । नन कौडिण्यगोत्रीय मरतके पुत्र थे और इनकी माताका नाम कुन्दव्वा था । इन्होंने अनेक जैनमन्दिर बनवाये और जैनशासनके उद्धारका महनीय कार्य किया । इस प्रकार मन्त्री भरत और नन्न में पिता-पुत्र सम्बन्ध घटित होता है । रचनाएँ
पुष्पदन्त बसाधारण प्रतिभाशाली महाकवि थे। इतना ही नहीं, वे विदग्ध दार्शनिक और जैन सिद्धान्तके प्रकाण्ड पण्डित भी थे। क्षीणकाय होने पर भी उनकी आत्मा अत्यन्त तेजस्वी थी । वे सरस्वती-निलय और काव्यरत्नाकर कहे जाते थे । इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं
१. जरनल बाम्बे ब्रांच रायल एशियाटिक सोसाइटी, जिल्द १८, ५० २३९ ।
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : १०९