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सं० १३६५ व्यतीत होने पर वैशाखमासमें यह रचना पूर्ण को ।'
गन्धर्वके उक्त उल्लेखसे स्पष्ट है कि पुष्पदन्त ई. सन् १३०८से पूर्ववर्ती हैं। पुष्पदन्तके महापुराणपर एक टिप्पण प्रभाचन्द्र पण्डितने धाराके परमार नरेश जयसिंहदेवके राज्यकालमें लिखा है। जयसिंहदेवका ताम्रपत्र सं० १११२ (सन् १०५५)का प्राप्त हुआ है।
महापुराणटिप्पणको एक अन्य प्रतिमें बताया गया है कि श्रीचन्द्र मुनिने भोजदेवके राज्यकालमें वि० सं० १०८० (सन् १०२३)में 'समुच्चयटिप्पण' लिखा। सम्भवत: ये श्रीचन्द्र 'दसण-रूह-दयण-करण्ड' और 'कहाकोसुके रचयिता हैं । अतः पुष्पदन्तका समय सं० १०८०से पूर्व है । महापुराणकी कुछ प्रतियों में सन्धि-शीर्षक पद्य आया है, जिसमें लिम्बा है-"जो मान्यखेट दोन और अनाथोंका धन था एवं विद्वानोंका प्यारा था, वह घारानाथ नरेन्द्रकी कोपारिनसे भस्म हो गया; अब पुष्पदन्त कवि कहाँ निवास करेंगे।" __उक्त घटना वही है, जो 'पाइयलच्छोनाममाला' तथा परमारनरेश हर्षदेव सम्बन्धी एक शिलालेखमें उल्लिखित है धनपालने अपने कोशको रचना सन् ९७२में की है। अतएव उक्त उल्लेखोंके प्रकाशमें यह माना जा सकता है कि मान्यखेटको लूटके समय पुष्पदन्त जीवित थे। 'गायकुमारचरिउ' (१२११११-१२)
और महापुराणमें मान्यस्वेटके राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराजका निर्देश आया है। ____ खोट्टिगदेवका शक ८९३ (सन् ९७१)के अभिलेखमें उल्लेख आया है। कवि पुष्पदत्तने महापुराणको रचना सिद्धार्थ-संवत्सरमें आरम्भ की और क्रोधनसंवत्सरमें आषाढशुक्ला दशमीको (महा. १०२।१४।१३) समाप्त | कृष्णराज और खोट्टिगदेवके समयको दृष्टिसे ज्योतिषगणनानुसार क्रोधन-संवत्सर ई० सन् ९६५, ११ जूनको आता है । अतः यही समय महापुराणकी समाप्तिका है। महापुराणके पश्चात् क्रमशः 'णायकुमारचरिउ' और 'जसहरचरिउको रचना की गयो है । संक्षेपमें कविका समय ई. सन्को दशम शती है।
आश्रयदाता और समकालीन राजा महाकवि पुष्पदन्त भरत और नन्नके आश्रयमें रहे थे। ये दोनों ही महा१. जसहरचरिज, ४।३०। २. महापुराण, प्रस्तावना, पृ. १४ । ३. 'कहाकोसु प्राकृत-पन्थपरिषद्, ग्रन्यांक १३, प्रस्तावना, पृ० ४ । ४. महापुराण, प्रस्तावना, पृ० २५ । ५, णायकुमारचरिउ, भारतीय ज्ञानपीठ, प्रस्तावना, पृ० १७ । १०८ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा