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भौति प्रकट है कि कृष्ण तृतीयने चोलदेश पर विजय प्राप्त की थी। कविने धाराका द्वारा मामले की
दिशा है। यह घटना कृष्ण तृतीयके बादकी और खोट्टिगदेवके समयको है । धनपालकी पाइयलच्छी कृतिसे भी सिद्ध है कि वि० सं० १०२९ में मालवनरेशने मान्यखेटको लूटा था ।२ यह यह धारा नरेश हर्षदेव था जिसने वोट्टिगदेवसे मान्यखेट छीना था। अत: कवि पुष्पदन्तको कृष्ण तृतीयका समकालीन होना चाहिए । यहाँ एक शंका यह है कि महापुराण शक सं० ८८८में पूरा हो चुका था और यह लूट शक् सं० ८९४ में हुई । तब इसका उल्लेख केसे कर दिया गया ? अतएव यह संभव है कि पुष्पदन्त द्वारा उल्लिखित संस्कृत-श्लोक प्रक्षिप्त हो। घशस्तिलकचंपूके लेखकने जिस समय अपना ग्रंथ समाप्त किया था उस समय कृष्ण तृतीय मेलपाटीमें पड़ाव डाले हुए था। सोमदेवने भी उसे चोलविजेता कहा है। अतः पुष्पदन्त और सोमदेव समकालीन सिद्ध होते हैं। श्रीनाथूराम प्रेमीने निष्कर्ष निकालते हुए लिखा है-"शक् सं० ८८१में पुष्पदन्त मेलपाटीमें भरतमहामात्यसे मिले और उनके अतिथि हुए। इसी साल उन्होंने महापुराण शुरू करके उसे शक सं० ८८७में समाप्त किया। इसके बाद उन्होंने नागकुमारचरित और यशोधरचरित लिखें । यशोघरचरितकी समाप्ति उस समय हुई, जब मान्यखेट लदा जा चुका था । यह शक सं० ८९४के लगभगकी घटना है। इस तरह वे शक सं०८८१से लेकर कम-से-कम ८९४ तक, लगभग १३ वर्ष मान्यखेटमें महामात्य भरत और नन्नके सम्मानित अतिथि होकर रहे, यह निश्चित है।"
एक अन्य विचारणीय तथ्य यह है कि 'जसहरचरित' में तीन प्रकरण ऐसे हैं, जो पुष्पदन्त कृत नहीं है । ये प्रकरण गन्धर्वनामक कवि द्वारा प्रक्षिप्त किये गये हैं। गन्धर्वने लिखा है योगिनीपुर (दिल्ली)के वीसलसाहने उनसे अनुरोध किया कि पुष्पदन्तकृत 'जसहरचरिउ'में 'राजा और कोलाचार्यका मिशन', 'यशोधर-विवाह' एवं 'पात्रोंके जन्म-जन्मान्तरोंका विस्तृत निरूपण' जोड़कर इस ग्रन्थको उपादेय बना दीजिए। तदनुसार कृष्णके पुत्र गन्धर्वने वि०
१. धारानाथ-नरेन्द्र-कोप-शिखि ना दग्धं जिंदग्धं प्रियं,
क्वेदानी वसति करिष्यति पुनः श्रीपुष्पदन्तः कवि । २. विक्कमकालस्स गए अउणत्तिसुतीरे सहस्सम्मि
मालव-नरिंद पाडौए लूडिए मण्णखेडम्मि" ३. जन साहित्य और इतिहास, प्रथम संस्करण, १० ३२८-३२९ ।
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