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________________ लिये उसमें भी उन्हें कुछ कड़वक जोड़ने पड़े और पुष्पिकामें अपना नामांकन किया। हम प्रेमीजीके इस अनुमानसे पूर्णतया सहमत हैं कि स्वयंभुदेवने अपनी समझसे यह ग्रन्थ पूरा ही रचा था, पर उनके पुत्र त्रिभुवनस्वयंभुको कुछ कमी प्रतीत हुई और उस कमीको उन्होंने नयी-नयी सन्धियाँ जोड़कर पूरा किया। 'रिदठणेमिचरित' की २९ सन्धियां तो स्वयंभुदेवकी हैं। ९९वीं सन्धिके अन्तमें एक पद्य आया है, जिसमें कहा है कि 'पउमचरिउ' या 'सुव्वयचरिउ' बनाकर अब मैं हरिवंशकी रचनामें प्रवृत्त होता हूँ। सरस्वतीदेवी मझे स्थिरता प्रदान करें। इस पद्यसे यह ध्वनित होता है कि त्रिभुवनस्वयंभुने 'पउमरिज' के संवर्द्धनके पश्चात् हरिवंशके संवर्द्धनको ओर ध्यान दिया और उन्होंने १०० से ११२ तककी सन्धियां रची । अन्तिम सन्धि तक पुष्पिकाओंमें त्रिभुवनस्वयं भुका माम प्राप्त होता है। १०६, १०८, ११०, और १११वीं सन्धिपद्योंमें मुनि यसःकीतिका नाम आता है। प्रेमोजीका अभिमत है कि यशःकातिने जीर्ण-शीर्ण प्रतिको ठीक-ठाक किया होगा और उसमें उन्होंने अपना नाम जोड़ दिया होगा। इस प्रकार त्रिभुवनस्वयंभुने 'सुद्धयचरिउ', 'पउमचरित' और 'हरिवंशचरिउ' इन तीनों ग्रन्थों में कुछ अंश जोड़कर इन्हें पूर्ण किया है । प्रेमीजीने सुद्धयचरिउको सुन्वयचरिउ माना है, पर यह मान्यता स्वस्थ प्रतीत नहीं होती। निश्चयतः त्रिभुवनस्वयंभु अपने पिताके समान प्रतिभाशाली थे । काव्यरचनामें इनकी अप्रतिहत गति थी। महाकवि पुष्पदन्त महाकाच स्वयम्भूको गमकथा यदि नदी है, तो पुष्पदन्तका महापुराण समुद्र । पुष्पदन्तका काम अलंकृत वागोका चरम निदर्शन है । दर्शन, शास्त्रीय ज्ञान और काव्यत्व इन तीनोंका समावेश महापुराणमें हुआ है। पुष्पदन्तका घरेलू नाम खण्ड या खण्डू था : इनका स्वभाव उग्र और स्पष्टवादी था। भरत और बाहुबलिके कथासन्दर्भमें उन्होंने राजाको लुटेरा और चोर तक कह दिया है । कविके उपाधिनाम अभिमानमेरु कविकुल तिलक, सरस्वतीनिलय और काव्यपिसल्ल थे । महापुराणके अन्तमें कविने १०४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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