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________________ जो अपना परिचय अंकित किया है उससे कविके व्यक्तित्वपर पूरा प्रकाश पड़ता है । लिखा है__ "सूने घरों और देबकुलिकाओंमें रहनेवाले कलिमें प्रबल पापपटलों से रहित, बेघरबार, पुत्र-कलत्रहीन, नदी-वापिका और सरोवरोंमें स्नान करने वाले, पुगने वल्कल और वस्त्र धारण करनेवाले. धूलधसरित अंग, दुर्जनके संगसे रहित, पृथ्वीपर शयन करनेवाले, अपने हाथोंका तकिया लगाने वाले, पण्डितमरणकी इच्छा रखनेवाले, मान्यखेटवासी, अर्हन्तके उपासक, भरत द्वारा सम्मानित, काव्यप्रवन्धसे लोगोंको पुलकित करनेवाले, पापरूपो कीचड़को धोनेवाले, अभिमानमेरु पुष्पदन्तने यह काव्य जिनपदकमलों में हाथ जोड़े हुए भक्तिपूर्वक क्रोधनसंवत्सरमें आषाढशुक्ला दशमीको लिखा।" इन पंक्तियोंसे कविके व्यक्तित्वपर पूरा प्रकाश पड़ता है। कवि प्रकृतिसे अक्खड़ और निःसंग था । उसे संसार में किसी वस्तुकी आकांक्षा नहीं थी । वह केवल निःस्वार्थ प्रेम चाहता था। भरतने कविको प्रेम और सम्मान प्रदान किया । पुष्पदन्त मोजी और फक्कड़ स्वभावके थे। यही कारण है कि जीवनपर्यन्त काव्यसाधना करने पर भी वे अपनेको 'काव्य-पिसल्ल' (काव्य-पिशाच) कहना नहीं चूके। महाकवि पुष्पदन्त कश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे। उनके पिताका नाम केशव भट्ट और माताका नाम मुग्धादेवी था। आरंभमें कवि शैव था और उसने भैरव नामक किसी शैव राजाकी प्रशसामें काव्य-रचना भी की थो; पर बादमें वह किसी जैन मुनिके उपदेशसे जैन हो गया और मान्यखेट आनेपर मंत्री भरतके अनुरोधसे जिनभक्तिसे प्रेरित होकर काव्य-रचना करने लगा था । पुष्पदन्तने संन्यासविधिसे मरण किया। कविका जन्मस्थान कौन-सा प्रदेश है, यह निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता। मान्यखेटमें कविने अपनी अधिकांश रचनाएँ लिखी हैं । श्री नाथूराम प्रेमीने उन्हें दक्षिणमें बाहरसे आया हुआ बतलाया है । उनका कथन है कि एक तो अपभ्रंश-साहित्य उत्तरमें लिखा गया । दूसरे, पुष्पदन्तको भाषामें द्रविडशब्द नहीं हैं। मराठीशब्दोंका समावेश रहनेसे उन्हें विदर्भका होना चाहिए। डॉ० पी० एल० वैद्य डोड्ड, मोड्ड आदि शब्दोंको द्रविड़ समझते हैं । कविने यह तो लिखा है कि ये मान्यखेट पहुंचे पर कहाँसे मान्यखेट पहुंचे यह नहीं बताया है । इस काल में विदर्भ साधनाका केन्द्र था। संभव है कि वे वहीं से आये हों। धाचार्यसुरुप काव्यकार एवं लेखक : १०५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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