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________________ अन्य व्यक्ति काव्यभारको वहन नहीं कर सकता है। निश्चयतः त्रिभुवनस्वयंभु आगम, व्याकरण, काव्य आदि विषयोंके ज्ञाता थे। इस कथनसे स्पष्ट है कि त्रिभुवनस्वयंभु शास्वश पण्डित थे। जिसप्रकार स्वयंभुदेव धनन्जय और श्वलइयाके आश्रित थे, उसी तरह त्रिभुवन वन्दइयाके | ऐसा अवगत होता है कि ये तीनों ही आश्रयदाता किसी एक ही राजमान्य या धनी कुलके थे। धनञ्जयके उत्तराधिकारी धवलइया और धवलइयाके उत्तराधिकारी बन्दइया थे । एकके स्वर्गवासके पश्चात् दूसरेके और दूसरेके बाद तीसरेके आश्रयमें आये होंगे। बन्दइयाके प्रथमपुत्र गोविन्दका भी त्रिभुवनस्वयंभुने उल्लेख किया है, जिसके वात्सल्यभावसे पामचरिउके शेष सात सर्ग रचे गये हैं। बन्दइयाके साथ पउमारउके अन्तमें त्रिभुवनस्वयंभुने नाग, श्रीपाल आदि भव्यजनोंको आरोग्य, समृद्धि, शान्ति और सुखका आशीर्वाद दिया है।' त्रिभुवनस्वयंभुका समय स्वयंभुके समान ही ई० सन् की नवम शताब्दी है । त्रिभुवनस्वयंभुने पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ और पञ्चमीचरिउको पूर्ग : है। * डॉ हीरा जैनका अभिगत है त्रिभुवनस्वयंभुने रिट्ठणेमिचरिउके अपूर्ण अंशको पूर्ण किया है । परमचरिउ इनका पूर्ण अन्ध है। डॉ. भायाणी पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ और पञ्चमीचरिउ इन तीनोंको अपूर्ण मानते हैं और तीनोंकी पूर्ति त्रिभुवनस्वयंभु द्वारा की गयी बतलाते हैं । पर एक लेखककी सभी कृतियाँ अधूरी नहीं मानी जा सकती हैं, क्योंकि लेखक एक कृतिको पूर्ण कर ही दूसरी कृतिका आरम्भ करता है। अप्रत्याशितरूपसे मृत्युके आ जाने पर कोई एक ही कृति अधूरी रह सकती है। अतः प्रेमीजीके इस अनुमानसे हम सहमत हैं कि त्रिभुवनस्वयंभुने अपने पिताकी कृतियोंका परिमार्जन किया है। त्रिभुवनने रामकथाकन्याको सप्त महासगांगी या सात साँवालो कहा है - सत्त-महासंगंगी ति-रयण-भूसा-सु-रामकहकण्णा । तिहुअण-सयम्भु-जणिया परिणउ यन्दइय-मण-तणय ।। स्पष्ट है कि ८४वों सन्धिसे ९०वी सन्धि तक सात सन्धियाँ 'पउमचरिउ'की त्रिभुवनस्वयंभु द्वारा विरचित हैं । ८४वों सन्धिसे ठीक सन्दर्भ घटित करनेके १. पदमचरिउ, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य १७,१८ । २. पउमचरित, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य १९ । आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १०३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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