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________________ ब्रह्मदत्त, दिवाकर, अंगारगण, मारुतदेव, हरदास, हरदत्त, धणदत्त, गुणधर, जोवदेव, विमलदेव, मूलदेव, कुमारदत्त, त्रिलोचन आदि कवियोंके नाम भी बाये हैं । अपभ्रश-कवियों में चतुर्मुख, धुत, घनदेव, धइल्ल, अज्जदेव, गोइन्द, सुद्धसील, जिणास, विअड्ढके नाम भी आये हैं । स्वयंभुख्याकरण पउमचरिउके एक पद्यसे कविके अपभ्रंश-व्याकरण का भी संकेत प्राप्त होता है। बताया है कि अपन शरूप मतवाला हाथी तभी तक स्वच्छन्दतासे भ्रमण करता है, जब तक कि स्वयंभुव्याकरणरूप अंकुश नहीं पड़ता । परन्तु यह व्याकरणग्रन्थ अभी तक अनुपलब्ध है। श्रीप्रेमीजीका मत है कि सुद्धयचरिय कोई पृथक् ग्रन्थ नहीं है, यह सुव्वयचरिउ होना चाहिए, जो पउमचरिउका अपर नाम है । निश्चयतः अपन शकाव्य-रचयिताओंमें स्वयंभुका महनीय स्थान है। ये काव्य और शास्त्र दोनोंके पारंगत विद्वान हैं। इनको रचनाग अस्तिनी शान्तायसा लौर द्वाराशी भरसक प्राप्त है। प्रकृतिचित्रण और निरीक्षणकी क्षमता उनमें अद्भुत थी। त्रिभुवनस्वयंभु स्वयंभुदेवके छोटे पुत्रका नाम त्रिभुवनस्वयंभु था। ये अपने पिताके सुयोग्य पुत्र थे और उन्हींके समान मेधावी कवि थे । कविराजचक्रवर्ती उनका विरुद था। प्रशस्तिके पद्योंसे उनकी विद्वताका पूरा परिचय प्राप्त होता है। लिखा है तिहुअण-सयम्भु-धवलस्सा को गुणे वणिं जए तरइ । वालेण विजेण सयम्भु-कश्व-भारो समब्बूढो ||५|| वायरण-दर-क्वन्धो आगम-मंगोपमाण-वियड-पओ। तिहुअण-सयम्भु-धवलो जिण-तित्थे वहउ कश्वभर' ॥६॥ अर्थात् त्रिभुवनस्वयंभुने अपने पिताके सुकवित्वका उत्तराधिकार प्राप्त किया। उसे छोड़कर स्वयंभुके समस्त शिष्योंमें ऐसा कौन था, जो कविके काव्य भारको ग्रहण करता। त्रिभुवनस्वयंभुको धवल-वृषभकी उपमा दी गयी है । व्याकरणके अध्ययनसे मजबूत स्कन्ध, आगमोंके अध्ययनसे सुदृढ अंग और व्याकरणके अध्ययनसे विकटपदविज्ञ त्रिभुवनस्वयंभुके अतिरिक्त १. पउमचरिउ, प्रशस्तिगाथा, पद्य ५,६ । १०२ : तीपंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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