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३. ज्ञानलोचनस्तोत्र ४. शृंगारसमुद्रकाव्य ५. श्वेताम्बर-पराजय ६. नेमिनरेन्द्रस्तोत्र ७. सुषेणचरित्र ।
चतुर्विशतिसन्धानकाव्यमें एक ही पद्य है, जिसके २४ अथं कविने स्वयं किये हैं । पहा इस प्रकार है--
श्रेयान् श्रीवासुपूज्यो वृषभजिनपति: श्रीगुमाङ्कोऽय धर्मों यंपुष्पदन्तो मुनिसुव्रतजिनोऽनन्तवाक् श्रीसुपाश्वः । शान्तिः पद्मप्रभोरो विमलविभरसौ वर्द्धमानोप्यजाको
मल्लिमिनमियाँ सुमतिखतु सच्छीजगन्नाथधीरम् ॥" इस पद्यमें २४ तीर्थंकरोंको नमस्कार किया गया है। कविने पृथक्-पृथक् २४ अर्थ लिखे हैं।
दूसरी कृति सुखनिधान है, जिसकी रचना कवि जगन्नायने तमालपुरमें की है । इस ग्रन्थमें कविने अपनी एक अन्य कृतिका भी उल्लेख किया है । 'अत्याध अस्माभिरुक्तं 'श्रृंगारसमुद्रकाव्ये वाक्य के साथ शृंगारसमुद्रकाव्यकी सूचना दी है । अतः कषिको यह रचना भी महत्त्वपूर्ण रही होगी ।
एक अन्य कृति श्वेताम्बर-पराजय है। इसमें श्वेताम्बरसम्मत केलिभक्तिका सतिक निराकरण किया है। इस पंचमें भी एक अन्य कृतिका निर्देश मिलता है। वह कृति हैं 'स्वोपझनेमिनरेन्द्रस्तोत्र' । इस कृतिकी रचना कविने वि० सं० १७०३ में की है । किस्सा है
"वत्से गुणाघ्रजीतेन्दुपुते (१७७३) द्वीपोत्सवे दिने ।
मृत्ति वादः समातोयं सितम्बर-कुयुक्तिहा ॥१॥ पति पताम्बर-पराजये कषि-गमक-बारिवामित्वगुणालंकृतेन खोहिल्ल बकोदमपोमराजलसुतेन पचायवादिना कृते केवलिनिराकरण समाप्तम्।"
कविको एक अन्य रचना 'सुषेणचरित'का भी निर्देश मिलता है । यह अंक मारक महेन्द्रकोसिके आमेर-शास्त्रमण्डारमें सुरक्षित है।
सुसनियामा की कथा अंकित है। यह पांच परिच्छेदोंमें
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धाचार्यतुल्य काम्यकार एवं पलक : ११