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"वीरा विशुद्धमतयो मम सच्चरित्रं कुर्वन्तु शुद्धमिह यम विपर्ययोक्तं । दीपो भवेत्किल करे न तु यस्य पुंसो दोषो न चास्ति पतने खलु तस्य लोके 11 आचार्य पूर्णेन्दु- समस्त की त्ति-सरोजकीर्त्यादिनिदेशतो मै ।
कृतं चरित्र सुपुरांतमाले श्रीपालराज्ञः शंधामनाम्ना ।।२०९ ||
इस प्रकार कवि जगन्नाथ गद्य-पद्यरचना में सिद्धहस्त दिखलाई पड़ते हैं । सुखनिधानमें विदेहक्षेत्रस्थ श्रीपालका चरित निबद्ध किया गया है।
९२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा