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________________ अजितजिनचरित्रं बोधपात्रं बुधाना । रचितममलवाग्मि-रक्त.रत्नेन तेन ||४०।। मुद्गले भूभुजां श्रेष्ठे राज्येऽवरंगसाहिके। जहानाबाद-नगरे पाश्चनाजिनालये ।।४।। अर्थात् अरुणमणिने औरंगजेबके राज्यकालमें वि० स० १७१६ में जहानाबाद नगर वर्तमान नई दिल्ली के पार्श्वनाथ जिनालयमें अजितनाथपुराणकी समाप्ति की है । अतः कविका समय १८वीं शती है । रचना __ कविकी एक ही रचना अजितना उपलका है: इनकी जातिभित्री जैन सिद्धान्त भवन आरामें भी है। द्वितीय तीर्थकर अजितनाथका जीवनवृत्त वर्णित है। जगन्नाथ जगन्नाथ संस्कृत-भाषाके अच्छे कवि हैं । ये भट्टारक नरेन्द्रकीत्तिके शिष्य थे। इनका वंश खण्डेलवाल था और पोमराज श्रेष्टिके सुपुत्र थे। इनका भाई वादिराज भी संस्कृत-भाषाका प्रौढ़ कवि था। इन्होंने वि० सं० १७२९ में वाग्भटालंकारकी कविचन्द्रिका नामकी टोका लिखी थी। ये तक्षक वत्तमान टोडा नामक नगरके निवासी थे। वादिराजके रामचन्द्र, लालजो, नेमिदास और विमलदास ये चार पुत्र थे। विमलदासके समयमें टोडामें उपद्रव हुआ था, जिसमें बहुतसे अन्य भी नष्ट हो गये थे। बादिराज राजा जयसिंहके यहां किसी उच्चपदपर प्रतिष्ठित थे। कविवर जगन्नाथने कई सुन्दर रचनाएं लिखी हैं। स्थितिकाल जगन्नाथने वि० सं० १६९९ में चतुर्विशतिसन्धान स्वोपाटीकासहित लिखा है। इनका समय १७ वीं शतीका अन्त और अठारहवीं शतीका प्रारंभ होना चाहिए। श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीले जैनात्यप्रशत्तिसंग्रह प्रथम भागकी प्रस्तावनामें कविवर जगन्नाथकी कई रचनाओंका निर्देश किया है। इनके अनुसार कविको सात रचनाएं हैं १. चतुर्विशतिसन्धान स्वोपज्ञ २. सुखनिधान ९० : तीर्थकर महावीर और उनकी आवार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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