________________
अभिनव पंडिताचार्यका उल्लेख श्रवणबेलगोलके निम्नलिखित अभिलेखमें पाया जाता है
'स्वस्ति श्रीमूलसङ्घदेशिय गणपुस्तकगच्छ कोण्डकुन्दान्वयद श्रीमदभिनवचारुकीत्ति पण्डिताचार्य्यर शिष्यलुसम्यक्त्वाद्यनेक-गुण-गणाभरणभूषिते रायपात्रचूडामणिबेलूगुलद मङ्गायि माडिसिद त्रिभुवनचूडामणियेम्ब चैत्यालय के मङ्गलमहा श्री श्री श्री ।"
इस अभिलेखसे अभिनव पण्डिताचार्यका समय शक सं० २२४७के पूर्व होना चाहिए । इन्होंने अपने शिष्य मङ्गायसे त्रिभुवनचुडामणि चैत्यालयका निर्माण कराया था, जो कालान्तर में माय वसति के नामसे प्रसिद्ध हुआ ।
दूसरे अभिनव पण्डिताचार्यका निर्देश शक् सं० १४६६, ई० सन् १५४४के अभिलेख में पाया जाता है। विजयनगरनरेश देवरायकी रानी भोमादेवीसे इन अभिनवपंडिताचार्यने शान्तिनाथबसतिका निर्माण कराया था । अतः इस आधार पर अभिनव पण्डिताचार्यका समय वि० की १६वीं शती सिद्ध होता है । बताया है
"स्वस्ति श्रीमद् राय-राज-गुरु- मण्डलाचार्य्यं महावादवादीश्वर रायवादिपितामह सकळविद्वज्जन- चक्रवत्तिगलु' बल्लाल राय जीव रक्षपालकाद्यनेक बिरुदावलि विराजमान रुमप्य श्रीमच्चारुकीत्ति पण्डित देवरुगल प्रशिष्ठरादतच्छिष्य श्रीमदभिनव चारुकीर्ति पण्डित - देवरुगल प्रिय शिष्य रावतस्याग्रजशिष्य श्री माच्चरुकीर्ति पण्डितदेवरुगल सतीर्थ्य राद श्रीमच्छान्तिकीर्ति देवरु (ग) लु शकवष ॥"
हमारा अनुमान है कि ये द्वितीय अभिनव पण्डिताचार्य हो गीतवीतराग और प्रमेयरत्नमालालंकारके रचयिता हैं । गीतवीतराग पर ई० सन् १८४२ को बोम्भरसकी कन्नड़ टीका भी प्राप्त है। गीतवीतरागकी पाण्डुलिपि ई० सन् १७५८ की उपलब्ध है । अतएव अभिनव पण्डिताचार्यका समय ई० सन् की १६वीं शतो होना चाहिए। डा० ए० एन० उपाध्येने इनके समयकी पूर्व सीमा १४०० ई० और उत्तर सीमा १७५८ बतलायी है | हमारा अनुमान है कि मध्यमें इनका समय ई० सन्की १६वीं शती होना चाहिए ।
रचनाएँ
अभिनव पंडिताचार्यकी दो रचनाएँ उपलब्ध हैं---गीतवीतराग और प्रमेयरत्नालंकार | गीतवीतराग में प्रबन्धगीत लिखे गये है । कविने स्वाराध्य ऋषभ१. जैन शिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, माणिकचन्ददिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, प्रभाङ्क, २८, अभिलेखसंख्या १३२ ।
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ८७