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"इति श्रीमत्स्याद्वादसिद्धान्तपारावारपारीणमानस्य देशीगणाप्रगण्यस्य श्रीमतेलुगुलपुरनिवासरसिकस्याभिनवचारुकोतिपण्डिताचार्यस्य कृतौ परीक्षामुखसूत्रव्याख्यायां प्रमेयरलालङ्कारसमाख्यायां प्रमाणस्वरूपपरिच्छेदः प्रथमः।"
इससे स्पष्ट है कि अभिनव चारुकीति पण्डिताचार्य देशोगणके आचार्य थे और बेलुगुलपुरके निवासी थे । स्याद्वादविद्याम निम्नात थे । अतएव अच्छे यायिक और तार्किकके रूपमें उनकी ख्याति रही होगी। प्रशस्तिके अनुसार ग्रंथकार देशीगण पुस्तकगच्छ कुन्दकुन्दान्वय इंगुलेश्वरलिके आचार्य थे । और परम्परानुसार श्रवणबेलगोल पट्टपर आसीन हुए थे। यह परम्परर ११वों शतीमें आरंभ हुई और इसमें चारुकीति नामके अनेक पट्टाधीश हुए। कभी-कभी श्रुतकीर्ति, अजितकति आदि कतिपय अन्य नामोंके भी भट्टारक हुए हैं । पर अधिकतर चारुकीति नामके भट्टारक हुए हैं। परस्पर भेद बतलानेके लिए अभिनव, पंडितदेव, पंडितार्य, पंडिताचार्य आदि विशेषणोंमेंसे एक या दो विशेष प्रयुक्त होते रहे हैं।
अभिनव पंडिताचार्य चारुकोत्तिकी एक अन्य रचना 'गीतवीतराग' भी उपलब्ध है । इस ग्रन्थमें कविने निम्न लिखित प्रशस्ति अंकित की है
"गाने यवंशांबुधिपूर्णचन्द्रः यो देवराजोजनि राजपुत्रः, तस्यानुरोधेन च गीतवीतरागप्रबन्धं मुनिपश्चकार ।।१।। द्राबिडदेशविशिष्ट सिंहपुरे लब्धशस्तजन्मासौ; बेलुमोलपण्डिसवर्यश्चक्रे श्रीवृषभनाथविरचितम् ॥२॥ स्वस्ति श्रीबेलगोले दोबंलिजलनिकटे कुन्दकुन्दान्वयेनोऽ भूतं स्तुत्या पुस्तकालश्रुतगुभरः ख्यातदेशोगणार्यः, विस्तीर्णाशेषरीतिप्रगुणरसंभूतं गीतयुग्वीतरागम्
शस्ताधीशप्रबन्धं बृधनुतमतनोत् पण्डिताचार्य वर्यः । इति श्रीमदायराजगुरुभूमण्डलाचार्यवर्णमहावादवादश्वरायवादिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवत्तिबल्लागरायजीवरक्षापाल कृत्यायने कवि रुद्वालीविराजितश्रीमद्देलुगुलसिद्धसिंहासनाधीश्वरश्रीमदभिनवचारुकीर्तिपण्डिताचार्यवयंप्रगीतवीतरागाभिवानाष्टपदी समासा ।"
इस प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि अभिनव पंडिताचार्यका जन्म दक्षिण भारतके सिंहपुर में हुआ था | जब श्रवणबेलगोलमें भट्टारक पद प्राप्त किया, तो इनका उपाधिनाम चारुकीत्ति हो गया । कविने गंगवंशके राजपुत्र देवराजके अनुरोध से गीतवीतरागकी रचना समाप्त की है। ८६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा