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________________ करनेवाला नृप आहार्यबुद्धि-राज्य-संचालनप्रतिभा सम्पन्न होता है। जो राजा मन्त्री या अमात्यवर्गकी नियुक्ति नहीं करता उसका सर्वस्व नष्ट हो जाता है। राज्यका संचालन मन्त्रीवर्गकी सहायता और सम्मतिसे ही यथार्थ हो सकता है। जो शासक ऐसा नहीं करता बह अपने राज्यकी अभिवृद्धि एवं संरक्षण मम्यक् रूपसे नहीं कर सकता। मन्त्रियोंके गुणोंका वर्णन करते हुए बताया है कि 'पवित्र, विचारशील, विद्वान्, पक्षपातरहित, कुलीन, स्वदेशज, न्यायप्रिय, व्यसनरहित, सदाचारी, शस्त्रविद्यानिपुण, शासनतन्त्रके विशेषज्ञको ही मन्त्री बनना चाहिये । मन्त्रिमण्डल राज्य-व्यवस्थाका अविच्छेद्य अंग माना गया है । मन्त्रिमण्डल के सदस्योंकी संख्या तीन, पांच अथवा सातसे अधिक नहीं होना चाहिये। सेता-विभाग राज्यको सुरक्षित रखने एवं शत्रुओंके आक्रमणोंसे बचानेके लिये एक सुदृढ़ और बहुत बड़ी सेनाकी आवश्यकता है। यह विभाग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बतलाया गया है। राज्यकी आयका अधिकांश भाग इसमें खर्च होना चाहिये 1 इस विभागकी आवश्यक सामग्नी एकत्र करने एवं सेना सम्बन्धी व्यवहारके संचालन के लिये एक अध्यक्ष होता है, जिसे सेनापति या महाबलाधिकृत कहा गया है। गजबल, अश्वबल, रथबल और पदातिबल ये चार शाखाएँ सेनाकी बतायी हैं। इन चारों विभागोंके पृथक्-पृथक् अध्यक्ष होते हैं, जो सेनापतिके आदेशानुसार कार्य करते हैं। चारों प्रकारकी सेनामें गजबल सबसे प्रधान' है, क्योंकि एक-एक सुशिक्षित हाथी सहस्रों योद्धाओंका संहार करने में समर्थ होता है। शत्रुके नगरको ध्वंस करना, चक्रव्यूह तोड़ना, नदी जलाशय आदि पर पुल बनाना एवं सेनाकी शक्तिको सुदृढ़ करनेके लिये व्यूह रचना करना आदि कार्य भी गजबल' के हैं। गजनलका निर्वाचन बड़ी योग्यता और बुद्धिमत्ताके साथ करना चाहिये । मन्द, मग, संकीर्ण और भद्र इन चार प्रकारकी जातियोंके हाथी तथा ऐरावत, पुण्डरीक, कामन, कुमुद, अञ्जन, पुष्पदन्त, सार्वभौम और १. द्रविणदानप्रियभाषणाम्यामरातिमिवारणेन यदि हितं स्वामिन सर्वावस्थासु बलते संवणोतीति बलम् । --नीतिवाक्यामतम, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैगग्रन्थमाला, नल समुद्देश्य, सूत्र १ । २. बलेषु हस्तिनः प्रधानमङ्ग स्वैरबमवरष्टायुधा हस्तिनो भवन्ति । --वही, सूत्र २ । ३. हस्तिप्रधानो विजयो राज्ञां यदेकोऽपि हस्तिसहस्र योधयति न सीदति प्रहारसहस्र णापि । मुखेन यानमात्मरक्षा परपुरावमदनमरिव्यूहविधातो अलेषु सेतुबन्धा बचनादन्यत्र सर्वविनोदहेतवश्चेति हस्तिगुणाः । -नही, सूत्र ३-६ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ७५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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