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________________ का राज्यकर्म है। राज्यकी योग्यताके सम्बन्धमें सोमदेवसरिने लिखा है कि राजाको शस्त्र और शास्त्रका पूर्ण पण्डित होना आवश्यक है। यदि राजा शास्त्रज्ञानरहित हो, और बास्त्रविद्यामें प्रवीण हो, तो भी वह कभी-न-कभी धोखा खाता है और अपने राज्यसे हाथ धो बैठता है। जो शस्त्रविद्या नहीं जानता बह भी दुष्टों द्वारा पराजित किया जाता है। अनाव पुःशी मेले मुहब नाथ राजाको शास्त्र-शास्त्रका पारगामी होना अनिवार्य है। मुर्ख राजास राजाहोन पृथ्वीका होना श्रेष्ठ है, क्योंकि मूर्ख राजाकं राज्यमें सदा उपद्रव होते रहते हैं। प्रजाको नाना प्रकारके कष्ट होते हैं, अज्ञानी नृप पशुवत् होनेके कारण अन्धाधुन्ध आचरण करते हैं, जिससे राज्यमें अशान्ति रहती है । राज्यप्राप्तिका विवेचन करते हुए बताया है कि कहीं तो यह राज्य वंशपरम्परासे प्राप्त होता है और कहींपर अपने पराक्रमसे राजा कोई विशेष व्यक्ति बन जाता है। अतः राजाका मूल क्रम-वंशपरम्परा और विक्रम पूरुषार्थ शौर्य हैं। राज्य के निर्वाह के लिये क्रम, विक्रम दोनोंका होना अनिवार्य है । इन दोनोंमसे किसी एकके अभावसे राज्य-संचालन नहीं हो सकता है। राजाको काम, कोध, लोभ, मान, मद और हर्ष इन छह अन्तरंग शत्रुओंपर विजय प्राप्त करना आवश्यक है क्योंकि इन विकागेकै कारण नृपति कार्य-अकार्यके विचारांमे रहित हो जाता है, जिससे शत्रुओंको राज्य हड़पने के लिए अवसर मिल जाता है। राजाके विलासी होनेसे शासन-प्रबन्ध भी यधार्थ नहीं चलता है, जिससे प्रजामें भी गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है और राज्य थोड़े दिनां में ही समाप्त हो जाता है। शासकको दिनचर्याका निरूपण करते हुए बताया है कि उसे प्रतिदिन राजकार्यके समस्त विभागों, न्याय, शासन, आय-व्यय, आर्थिक दशा, सेना, अन्तर्राष्ट्रीय तथा सार्वजनिक निरीक्षण, अध्ययन, संगीत, नृत्यअवलोकन और राज्यकी उन्नत्तिके प्रयत्नोंकी ओर ध्यान देना चाहिये। सोमदेवसूरिने राजाकी सहायताके लिए मन्त्री तथा अमात्य नियुक्त किये जानेपर जोर दिया है । मन्त्री, पुरोहित, सेनापति आदि कर्मचारियोंको नियुक्त १. राज्ञो हि दुष्टनिग्रहः पिष्टपरिपालनं च धर्मः । न पुनः शिरोमुण्डनं जटाधारणादिकं 11 नीतिवाक्यामृतम्, माणिकचन्द ग्रन्थमाला, वर्णाश्रमवती धान्यहिरण्यगशुकुप्यकृषिप्रदानफला च पृथ्वी, विद्यावृद्ध समुद्देश्य, सूत्र २, ३, ५ । २. वही, सूत्र २६ । ३. वही, अरिषड्यर्ग, सूत्र १ । ७६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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