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________________ जो त्रिवर्गमसे किसी एकको महत्त्व देता है, उसका अहित होता है, सोमदेवने अर्थको व्याख्या करते हुए लिखा है यतः सर्वप्रयोजनसिद्धिः सोऽर्थः । अर्थात् जिससे सभी कार्योको सिद्धि होती है, वह अर्थ है। समीक्षा करनेसे ज्ञात होता है कि सोमदेवको उक्त परिभाषा बहुत ही समीचीन है। यतः द्रव्य ( Ioney ) के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तुसे समस्त इच्छाएँ तृप्त नहीं हो सकती। जिस एक वस्तुके विनिमय द्वारा आवश्यकतानुसार अन्य वस्तुएँ प्राप्त हो सके, वही एक वस्तु सब प्रकारको आवश्यकताओंकी पूर्तिका साधन कही जा सकती है। अतः सोमदेवके परिभाषानुसार विनिमय' कार्य में प्रयुक्त होनेवाली वस्तु ही अर्थ (Wealth ) है। सोमदेवने इस ग्रन्थमें अर्थकी महत्ता स्वीकार करते हुए अन्याय और अनर्थका निषेध किया है । अर्थार्जन, अर्थसंरक्षण और अर्थवृद्धिक कारणोंका भी उल्लेख किया गया है। देश और कालके अनुसार अर्थसम्बन्धी विभिन्न उपजाणाएँ भी प्रतिरदा : गणि, सुगामा भोर वाणिज्यको वार्ता कहा है और इस वार्ताको समृद्धि ही राज्यकी समृद्धि बतलायी है। राजाको कृषि और वाणिज्यकी वृद्धिमें किस प्रकार सहयोग देना चाहिये आदि बातोंपर विस्तारसे प्रकाश डाला गया है। जहाँ आर्थिक पुष्टि राष्ट्रको समृद्धि, खुशहालीके लिए आवश्यक है वहाँ राजनीतिक जागरूकता उसको रक्षाका सबल साधन है । सोमदेवने इन्हीं दोनोंपर इसमें गहरा और बिस्तृत विचार किया है। अतः इस ग्रन्थमें वर्णित विचारोंको दो भागोंमें विभक्त कर सकते हैं--(१) आर्थिक विचार और ( २) राजनीतिक विचार । राजनीतिके अनुसार शासनको बागडोर ऐसे व्यक्तिके हाथमें होती है, जो बंशपरम्परासे राज्यका सर्वोच्च अधिकारी चला आ रहा हो । राजा राज्यको स्थायी समझकर सब प्रकारसे अपनी प्रजाका विकास करता है। राजाकी योग्यता और गुणोंका वर्णन करते हुए बताया गया है-'जो मित्र और शत्रुके साथ शासनकायमें समान व्यवहार करता है, जिसके हृदयमें पक्षपातका भाव नहीं रहता और जो निग्रह-दण्ड, अनुग्रह-पुरस्कारमें समानताका व्यवहार करता है, वह राजा होता है | राजाका धर्म दुष्ट, दुराचारी, चोर, लुटेरे आदिको दण्ड देना एवं साधु-सत्पुरुषोंका यथोचित रूपसे पालन करना है। सिर मुड़ाना, जटा धारण करना, व्रतोपवास करना राजाका धर्म नहीं है । वणं, आश्रम, धान्य, सुवर्ण, चाँदी, पशु आदिसे परिपूर्ण पृथ्वीका पालन करना राजा. १. नीतिवा०, अर्थसमुद्देश्य, सूत्रसं० १ । प्रबुवाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ७५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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